Skip to main content

हरे पेचों को छूकर आती हवा


खिड़की के रास्ते गरम चुभन से भरी सीली हवा का झोंका आता है। बरसात कब की जा चुकी मगर यहाँ-वहाँ उग आये हरे पेचों से सीलापन हवा के साथ उड़ता रहता है।

एक बेहद हल्की ख़ुशबू आती है। जैसे कोई मन चटक कर खिल रहा हो।

बिल्ली मुझे देखती है। मैं उसे पूछता हूँ कि जिस तरह स्वप्न चटक कर खिलता है और मौसम में घुलकर अदृश्य हो जाता है, उसी तरह मन भी बह जाता होगा?

लघुत्तम मौन के बाद बिल्ली कूद कर खिड़की में बैठ जाती है। अगली छलांग में वह गायब हो जाती है। जैसे एक स्वप्न।

तेरी ओर तेरी ओर

सुरों की पेटी खोलने वाला क्या सुरों को ठीक रास्ता बता सकता है? क्या कहीं बीच में ही झर जाते हैं सुर जैसे आकाश को ताकती लता के फूल ज़मीन पर गिरते रहते हैं।

हम स्वप्न में किसी फूल को देखते हैं तब क्या फूल को भी ऐसा कोई स्वप्न आता है?

स्वप्न अलोप होता हुआ एक रेखाचित्र है। कभी वह लिखित संदेशे नहीं छोड़ता।

मगर क्यों?

हवा का झोंका फिर आता है।

एक गीत का मिसरा उलझकर सांसों में टँग जाता हैं। पीठ को पीछे की ओर किये खिड़की से बाहर देखते जाना कि एक बार बारिश कितनी हरियाली फैला देती है।

उसने क्या पहना था? एक गहरा रंग। रंग के साथ कोई हल्की किनारी? कुछ याद नहीं। जिसे देखना हो उसे सलीके से देखा नहीं जाता।

कुछ कत्थई फूल खिल उठते हैं। गीत कहीं दूर चला जाता है जाने किसकी ओर।

स्वप्न, फूल, बारिश, हरियाली, प्रतीक्षा और गरम-सीली हवा आवाज़ हो जाती है। अक्सर दुविधा के पायदानों पर चुप बैठी हुई आवाज़। इसलिए कि कुछ भी आसान नहीं होता।

इस चुप्पी में होठों पर रखी अंगुलियां मीठी लगने लगती हैं। इस मिठास में ख़याल टूट जाता है। कितना कुछ बचा रहता है। जैसे कहना बचा रह जाता है।

कहना एक लकीर है। इसके दोनों और के संसार अलग हैं। कह देने या न कहने के सुख और दुख दोनों हैं।

कहना।
* * *

शुक्र है कि तुम्हारे इतना करीब होना हो पाता पाता है कि तुम्हारे चेहरे पर बने छोटे गड्ढे देखने को मिल जाते हैं। लेकिन हर बार तुम जब भी मिलते हो बाल क्यों छँटवा लेते हो? वे लंबे अच्छे दिखते हैं। उनमें अंगुलियां फेरने का मन बाक़ी रह जाता है। 

इस बार बाल बचाये रखना।
* * *

मैं फिर एक स्वप्न से जागता हूँ और सोने चला जाता हूँ।
* * *

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...