उद्विग्नता माने इज़्तराब माने एंजायटी अनेक कारणों से बचपन से ही हमारे भीतर घर कर लेती है। ये उद्विग्नता जब अनेक लोगों को चपेट में लेती है तो इसे सामूहिक उद्विग्नता अर्थात मास हिस्टीरिया कहा जाता है। सामूहिक उद्विग्नता अक्सर संक्रामक व्याधि की तरह समाज के बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लेती है। समाज का अधिसंख्य हिस्सा अपनी कल्पना शक्ति से भयावह स्थितियों के दृश्य बुनने लगता है। ईश्वर के रूठने, प्रकृति के कुपित होने, महामारी फैलने या राज्य के नष्ट होने जैसे किसी भी विषय के सामूहिक पागलपन में शामिल हो जाता है।
समाज का ये अस्वस्थ भाग ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए पशु-पक्षियों की बलि यहाँ तक कि नरबलि देने को एकमत हो जाता है। पहाड़ों, नदियों और अलंघ्य विशालकाय मैदानों में अनेक शापों के होने का प्रचार-प्रसार करता है। अनेक आशंकाओं में बाहरी सम्पर्क को समाप्त करता है और भेड़ों के झुंड की तरह मुंह में मुंह डालकर बैठ जाता है। अपने राज्य को नष्ट होने से बचाने के लिए प्रशिक्षित और बुद्धिमान योद्धा बनकर राज्य का स्वयंसेवक होने के स्थान पर विक्षिप्त होकर चिल्लाने लगता है। अपनी क्षति पर रोता है और दूसरे की क्षति पर हँसता है, तालियाँ पीटता है।
मास हिस्टीरिया समंदर की लहरों की तरह समाज में संचरित होता है। जब ये शांत हो जाता है तब तक अनेक लोग पूर्ण मनोरोगी हो चुके होते हैं।
हमारा अकेलापन, असंतोष, बेचैनी और घुटन इन क्रियाओं के मूल में है।
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मित्रो शांत रहिए। धैर्य धरिए। विचार कीजिये। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए जो योगदान देना चाहते हैं, वह काम कीजिये। दुख में अधीर हो उठना एक बात है और अपने कपड़े फेंक देना दूजी बात है। प्रसन्नता में आभारी होना एक बात है और विक्षिप्त की भांति गली में नाचना दूजी बात है।
सबके लिए प्रार्थना कि मन मस्तिष्क स्वस्थ रहे।