कभी महंगे काउच में धंसे रहे, कभी प्लेटफॉर्म पर पड़े रहे। न भला लगा न बुरा लगा। कभी सोए अजनबी बिस्तरों में, कभी घर के लिहाफ़ में दुबके रहे। न अफ़सोस रहा न ख़ुशी रही। कभी बैठे रहे मुंडेर पर, कभी गलियों की खाक पर चलते रहे। न कमतर लगा न बेहतर लगा। कभी मिले तो खो गए रूमान में, कभी बिछड़ गए तो तन्हा बैठे पीते रहे।
जीवन जैसा मिला उसे जी लिया।