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वेणासर की पाल - भंगभपंग



विज्ञान की कक्षा में पदार्थ के रूप पढ़ाये जा रहे थे। रसायन विज्ञान के माड़सा खूबजी ने बच्चों को सरल भाषा में बताया। "अवीं हंगाता हिय ठोस, अवीं मूत्राता हिय द्रव हिन अवीं टिट हणाता हिय गैस।"

#भंगभपंग - 7

कक्षा नौवीं की आख़िरी से पहली बैंच पर बैठा एक लड़का हंसा। उसकी हंसी के पीछे हंसी की एक लहर आई। लहर के साथ आगे की सब बैंचों के बच्चे बह गए। खूबजी ने कहा- "तुम्हारे लक्षण दिख रहे हैं। इस सेक्शन का एक भी बच्चा डॉक्टर नहीं बन पाएगा।"

कक्षा के पास से जा रहे हनु भा ने इस हंसी पर उपेक्षा भरी दृष्टि डाली। उनको इस बात की चिंता न हुई कि कोई बच्चा डॉक्टर नहीं बन पाएगा और विद्यालय का नाम रोशन न हो सकेगा लेकिन उनको मानव शरीर के अपशिष्टों के प्रति विद्यार्थियों की अरुचि से दुख हुआ।

टिट हणना एक अद्भुत सुखकारी कर्म है। पाद के प्रति अमानवीय सोच रखने वाले गांवों का ज़िक्र विश्व इतिहास में है। लेकिन बाड़मेर के बुजुर्ग पदेलों के लंबे पाद पर कोई नौजवान हंस दे तो पादक उसे उपहास भरी निगाह से देखता। साथ ही आस-पास के लोग भी बच्चों को इस तरह देखते कि बच्चे कई दिनों तक पादकों के आस-पास नहीं फटकते।

औरतें ज़रूर पादने के मामले में संकोची रही। वे इस क्रिया को गुप्तदान की तरह करती रही। इसे फुस्की कहा जाता था। आस-पास उपस्थित अन्य औरतें परशुराम की भृकुटी की तरह हो जाती किन्तु ये केवल चेतवानी भर होती। कुछ फूहड़ लड़कियां मुंह छिपा कर खेँ खेँ खेँ करती।

विद्यालय से निकले हनु भा फकीरों के कुएं के पास से नौरे की ओर चल पड़े। नौरे मैं सामूहिक भोज आयोजित होते थे। सभी प्रकार के मांगलिक और शोक पश्चात के भोज के कार्यक्रमों के लिए ये इकलौता पवित्र स्थल था।

नौरे में एक बड़ा कड़ाह था। इतना बड़ा कि उसमें दो आदमियों को रस्सी बांध कर अंदर उतारा जाता। कड़ाह में चिपका घी सदियों से स्थिर था। उस घी के कारण कड़ाह को साफ करके बाहर आना असंभव कार्य था। इसके लिए कड़ाह की सफाई के बाद आठ आदमी मिलकर रस्सी खींचते तब अंदर के लोग बाहर आ पाते थे।

भीकमजी एक दिन नौरे में अकेले बैठे थे। उन्होने सोचा कि आज कुछ काम तो है नहीं इसलिए कड़ाह साफ का देता हूँ। वे समाज सेवा के उद्धेश्य से कड़ाह साफ करने अंदर उतर गए। अट्ठारह दिन बाद पहले श्राद्ध आयोजन के लिए लोग नौरे पहुंचे तब उनको भीकमजी जलेबी के सूखे टुकड़े की तरह कड़ाही में पड़े मिले। भीकमजी की धोती और चमड़ी एक हो चुकी थी।

उनको कड़ाह से बाहर निकाल कर पुलिस थाने से गुमशुदगी की रिपोर्ट वापस ली गयी। वैसे भी थाने वालों ने रिपोर्ट दर्ज ही न की थी। जिस घी सने पन्ने पर रिपोर्ट लिखी गयी थी। वह एक रजिस्टर के बीच अधलटका था। वह लगभग सूख चुका था। उस पन्ने पर लगे घी से पुलिस वालों ने कई चूरमे कर लिए थे। पन्ने में चूंपा हुआ घी पुलिस की लूट से बच नहीं सका था।

कोतवाल साब ने कहा- "मैंने कहा था न पंडित आदमी है कहीं लंबे जीमण में चले गए होंगे। लेकिन ये कुछ ज़्यादा लंबा जीमण हो गया"

नौरे में आयोजित होने वाले भोज में जो चूरमा और हलुआ बनता था उसमें रुपए में दस आना घी हुआ करता था। भोज करने वाले भोजन का इतना सम्मान रखते थे कि खीर तालू तक भरी हुई मालूम होनी चाहिए। इसके बाद उनका सर शरीर से तीस डिग्री ऊपर हो जाता। इस डिग्री में थोड़ा सा भी झुकाव आता तो खीर टूटे हुये नल से टपकते पानी की तरह बाहर आने लगती। ये भोज का अपमान होता। इसलिए कोई भी अपने चप्पल नहीं देख सकता था।

जीमा हुआ हर देव अपने पाँवों से टटोलकर जूते चप्पल खोजता। विजया बूटी के प्रभाव से खोज की यह क्रिया इतनी शिथिल होती कि जूते और पाँव के अंगूठे का स्पर्श सामान्य मनुष्य के स्पर्श का एक हज़ारवां भाग होता। इससे जूते चप्पल यथास्थान बने रहते। जीपीएस सिस्टम की तरह आँखें ऊपर आकाश से ही जूतों की लोकेशन पता कर लेती।

नौरे के पश्चिम में पहाड़ी भूभाग है। इसकी खड़ी चढ़ाई पर इस तरह सहारा लिया जा सकता है कि आप लेटे हुये भी हैं और खड़े हुये भी हैं। ये पीसा की मीनार का सहारा लेकर सोने जैसी जगह है। इसके पत्थरों पर भांग और घी का सेवन किए हकूभा और उनकी बाद की पीढ़ियों के तमाम लोग लेट लगाते रहे हैं।

इस स्थान पर भोजन की सांद्रता के कारण एक नियत अंतराल से विस्फोट सुने जाते। पाद के साथ हर बार चालीस पचास ग्राम घी विसर्जित होता। इससे पहाड़ी के सब पत्थर इतने चिकने हो गए कि छोटे बच्चे फिसलपट्टी की तरह यहाँ पर सरकने के लिए दिन भर जमे रहते।

पाद के साथ आते घी से हुई रासायनिक क्रिया का ज़िक्र करते हुये हनु भा ने पहाड़ी पर तिरछे लेटे हुये कहा। "ग्रेनाइट में सिलिका और ऐलुमिना होती है और हाइड्रोफोलिक नामक रसायन ही इसे घोल सकता है। ये पत्थर चिकने और भुरभुरे इसलिए हो रहे हैं कि घी में भी शायद वैसा ही कोई रसायन हो।"

डमजी ने आँख निकाली और बाकी सब ने एक साथ कहा- "सू कालो थियु से?"

"पाद से अधिक बलशाली कोई रसायन नहीं है। ये मनुष्य का पाद ही है जो इस विशालकाय पहाड़ को टूटने बिखरने को मजबूर करता है।"

वेणासर की पाल के चिकने पत्थरों के पास जोशियों में सती हुई स्त्रियों की स्मृति में बनी छतरियाँ खड़ी थीं। तालाब के कादे जितने पानी को छूकर आती हवा में सभी पादक योग्यतानुसार सेवारत थे। पाद आता और घी के छोटे-छोटे फव्वारे छूटते।

डमजी ने कहा- "चौसठ की लड़ाई में चीन के पायलटो ने बाड़मेर में ये पत्थर देखकर समझा कि किसी बड़े कारखाने की चिकनी छत है। उन्होने यहीं पर बम बरसाने शुरू कर दिये। हवाई जहाज से बम गिरता और इस घी की चिकनाई पर फूट नहीं पाता। वह फिसलकर सीधा वेणासर तलाई के पानी में जमा हो जाता।"

खीर अब भी गले तक अटकी हुई थी इसलिए कोई भी डमजी की ओर देखकर निगाहों से प्रशंसा न कर सका। सबने आकाश की ओर देखते हुये। भांग से जुड़े जीपीएस के माध्यम से प्रशंसा के मौन संदेशे भेजे। तभी एक बड़ा पाद मशीनगन की तरह पत्थर से इस तरह टकराया जैसे स्कूल में लटके रेलवे पटरी के टुकड़े से रेलवे लाइन का बुश टकराता है और स्कूल में छुट्टी होने की घोषणा हो जाती है।


तस्वीर शिव मंदिर के रास्ते सूजेश्वर को जाने वाले मार्ग की है।


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