बाड़मेर में पकवान दीवाने

सर दो पेग ले लेते हैं। 
भाई सुबह से कुछ खाया ही नहीं है। 
सर ये गेट के सामने पकवान वाला है, बहुत अच्छे पकवान देता है। 
ले आइये। 
सर मिर्ची कम या ज़्यादा?
मिर्ची अच्छी। 
सर मीडियम ठीक रहेगी। 
भाई एक पतला सा पापड़। थोड़ी सी दाल और प्याज के चार बारीक टुकड़े। इतना मत सोचो। जैसा अच्छा लगे ले आओ।

बाड़मेर में पकवान दीवाने रहते हैं। लोग सुबह सवेरे पकवान खाने निकल पड़ते हैं। हर पकवान वाले ठेले के पास खड़े होकर आपको इंतज़ार करना पड़ता है। पकवान खाने के दीवाने अधिकतर विस्थापित होकर आए लोग थे। वे ही अपने साथ पकवान लेकर आए। लेकिन जल्द ही ये हर एक का प्रिय होने लगा।

मैंने किसी जाट को पहली बार पकवान खाते हुये देखा, वो हमारा कॉमरेड दोस्त खेताराम था। मैं तब भी पकवान नहीं खाता था। पिताजी को गलियों में चटोरों की तरह खाने की आदतें अच्छी नहीं लगती थी। ये भी एक वजह रही होगी मैं बहुत बार ललचाने के बाद भी आलू-टिक्की, छोले और पकवान जैसे ठेलों के पास भी नहीं गया।

इधर आकाशवाणी के गेट के सामने बिजली विभाग की दीवार के पास एक व्यक्ति ने साल डेढ़ साल पहले पकवान का ठेला लगाया। बिक्री इतनी तेज़ी से बढ़ी कि हाथगाड़े की जगह कबट लगाना पड़ गया। अब यहाँ सुबह की पहली किरण के आने से लेकर नौ दस बजे तक खूब भीड़ रहती है।

मैंने कभी यहाँ का पकवान चखा नहीं था। आवश्यकता थी तो चखना पड़ा। मेरे लिए ये पकवान बंदर के मुंह में अदरक सा रहा। मुझे कोई वजह न मिली कि इसे अगली बार खाया जाये। मैं अब भी राब और दही खाकर घर से निकलना चाहूँगा। 
* * *