विंड चाइम, गले की घण्टी, घुँघरू बंधे धागे, रिबन में गुंथी चिड़ियों जैसा जो कुछ घर लाता हूँ, उसे खिड़की पर टांग देता हूँ। बहुत बरसों से ऐसा करते रहने के कारण खिड़की पर इतनी चीजें टँग गयी हैं कि वे रोशनी को ढकने वाला पर्दा बन चुकी हैं। हवा चलने पर उनकी मिली जुली आवाज़ बहुत अलग होती है। अक्सर विंड चाइम की ट्यूब से घुँघरू टकरा जाते। इसी तरह पीतल की बड़ी घण्टी जो भेड़ों के गले में बांधी जाती है, उससे विंड चाइम की ट्यूब टकरा जाती है। एक विशेष टंकार कमरे में गूंजती। ऐसे स्वर जिनको मैंने पहले कभी नहीं सुना होता है। इनको सुनते हुए मैं सोचता कि किस से क्या टकराया होगा तब ये आवाज़ आई होगी। ऐसा सोचते हुए मुझे नींद आ जाती है। नींद में अक्सर एक ही सपना आता है। खिड़की में बंधी रहने वाली सब चीज़ें हवा में तैर रही हैं। मैं उनको पकड़ कर वापस बांध देना चाहता हूँ। खिड़की के उस ओर कभी-कभी एक चिड़िया आकर बैठ जाती है। वह बहुत देर तक बैठी रहती है। मुझे लगता है वह खिड़की में बंधी चीज़ों का बेढब संगीत सुनने आती है। इतना सोचते ही मुझे दुःख होता है कि चिड़िया का इतना उदास होना कितनी ख़राब बात है।
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]