कोई लड़ाकू विमान चुपचाप मेरे पास से गुज़र जाता है। उसके गुज़र जाने के बाद का सन्नाटा सुनाई देता है। एक गहरी बेचैनी से भरने लगता हूँ।
मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ। समय ख़त्म होता जा रहा है।
ये ख़याल आते ही कोई काम करते, कहीं चलते, कहीं बैठे हुए बेचैन हो जाता हूँ। जो काम कर रहा होता हूँ, उसे उसी पल छोड़ देना चाहता हूँ।
उस लम्हे किसी की आवाज़ सुनाई पड़ना, किसी काम में लगे रहने का ख़याल आना परेशान कर देता है। उस लम्हे मैं ब्लैंक हो जाना चाहता हूँ। इतना खाली कि जैसे कहीं कुछ नहीं है। मैं भी नहीं हूँ।
इसी घबराहट में अक्सर बाहर खुले आकाश के नीचे आ जाता हूँ। मैं देखने लगता हूँ कि बोगेनवेलिया पर नीम की छाया गिर रही है। मैं यही देखने के लिए आता हूँ। कुछ देर चुप खड़ा उसे देखता रहता हूँ।
बोगेनवेलिया नीम के लिए क्या करता है? कुछ भी तो नहीं। लेकिन कड़ी धूप की इन दोपहरों में उस पर नीम की छाया गिर रही है।
मैं ये देखकर शायद ख़ुद को सांत्वना दे रहा होता हूँ। तुम जो इतना प्यार करते हो। तुम नीम की छांव हो, मैं बोगेनवेलिया हूँ।
मैं इस देखने में पाता हूँ कि मेरे बदन पर खिले फूल झड़ रहे हैं। वे हवा के साथ तुम तक पहुंच रहे हैं। लेकिन मैं तुमसे इतना दूर हूँ कि अभी तुमको गले नहीं लगा सकता।
धुएँ की तलब मुझपर तारी हो जाती है। हालांकि तुम्हारी बाहों को धएँ के पर्दे के पीछे छिपाया नहीं जा सकता। मैं लम्बी छुट्टी पर मयखानों तक भाग जाना चाहता हूँ। ये जानते हुए भी कि बहकी-बहकी गंध से भरी ठंडी जगहों पर भी तुम्हारी नमी की चाहना दिल से नहीं जा सकेगी।
फिर एक सन्नाटा गूंजने लगता है। पत्ते उड़ने लगते हैं। कड़ी धूप से बचाती छांव में खड़ा हुआ अपने तक लौट आना चाहता हूँ। लेकिन मैं जानता हूँ कि ये कितना कठिन काम है।
जैसे ज़िन्दगी।