मेरे सामने एक सड़क थी। उस पर लोग बेतरतीब चले जा रहे थे। मैं चाहता था कि लोग ऐसे बेवजह चलते न जाएं। असल में वे जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां जाकर भी वे काम न करेंगे, जिसके लिए जा रहे हैं।
जैसे कोई प्रार्थनाघर जा रहा है तो वह व्यक्ति यहीं प्रार्थना कर सकता है। सड़क के किसी कोने पर खड़ा हो जाये। बैठ जाये। जैसे उसे अपने को भूलने में आसानी हो और प्रार्थना में असुविधा न हो। वह मन से शांत हो सके।
अचानक मैंने सोचा कि सब प्रार्थनाएं नहीं करते। कुछ लोग किताबें भी पढ़ते हैं। मुझे इसमें भी कुछ ग़लत न लगा कि कोई व्यक्ति सड़क किनारे बैठकर किताब पढ़ रहा है।
एक औरत थी। उसके साथ दो नन्हे बच्चे थे। वह उनका हाथ थामे हुए जा रही थी। वह अपने दो बच्चों को सड़क पर नहीं सुला सकती थी। मगर मैं सोचने लगा कि कोई तो हल होगा?
अचानक मैं मुस्कुराने लगा कि सड़क पर तुम्हारा हाथ थामकर चलने की गरज में क्या कुछ सोचे जा रहा हूँ। मुझे ये सब सोचना बंद करके तुमसे पूछना चाहिए कि क्या मैं तुम्हारी हथेली अपनी हथेली में लेकर चलूँ?
लेकिन मैंने नहीं पूछा।
एक तुम्हारी हथेली को थामने के लिए मैं क्या क्या बदल जाने का सोचता रहा।
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इस पुरानी तस्वीर में ग्रोवर साहब के घर में बैठा हुआ हूँ। मेरे पास रखा पिट्ठू थैला अब बीत चुका है। इन दिनों एक मैसेंजर बैग साथ रहता है। लेकिन बरसों से किसी के घर जाना हुआ ही नहीं। जाने क्यों।