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दोस्त, उस पार भी कोई हसीन सूरज नहीं खिला हुआ है...

मुझे विस्की प्रिय है और रम मेरी आखिरी पसंद. इनके बीच हर उस तरह की शराब समा सकती है, जो पीने लायक है भी और नहीं भी. मैंने पहली धार की देसी शराब पी और लुढ़क गया. मैंने रात भर सड़क के किनारे बैठ कर आला अंग्रेजी शराब पी और सुबह उससे निराश हो कर सो गया. मैंने शराब पीकर अपने प्रियजनों को वे अद्भुत बातें कहीं हैं, जो बिना पिए कभी नहीं कह पाता.

मुझे पहाड़ नसीब नहीं हुए जहाँ से मैं अपनी प्रतिध्वनि सुन सकूँ. मुझे अथाह रेत का सागर मिला जो अपने भीतर सब कुछ सोख लेता है. मेरी हर आवाज़ अनंत में खो जाती है. मेरे कई दोस्त समय के प्रवाह में इत्ते दूर बह गए हैं कि उनकी स्मृतियाँ लोप होने को आतुर है. वैसे एक मनुष्य कितना याद रख सकता है ?

साहित्य का इतिहास, मूर्तिकला की अनूठी परंपरा और भौगोलिक पैमाने, एक हज़ार साल से आगे सर्वसम्मत राय नहीं बना सकते. कुल जमा इस सदी के विलक्षण मानव का ज्ञान क्या है ? ये सोचते ही मैं हैरान हो जाता हूँ कि साठ साल औसत आयु वाला इन्सान सौ साल तक जी सकता है. इससे आगे के किस्से अपवाद होंगे यानि हमारी सौ पीढ़ियों के अतिरिक्त हमारे पास कहने को कुछ नहीं है... बावजूद इसके तमाम माँ - बाप अपने बच्चों को जीनियस बनाना चाहते हैं. भविष्य की पीढ़ियों की स्मृति में कितना बचा रहेगा मेरा बेटा ?

सोच का अंत नहीं और हासिल है सिफ़र.

सात दिन बड़े बोझ में बीते. काम बढ़ता गया. एक परिशिष्ट के लिए कवर स्टोरी लिखने का काम भी इन्ही हालत में मिला. मेरा बड़ा मन फ़िजूल की व्यस्तताओं में डूब गया. मेरे पास उस मेहरबान को शुक्रिया कहने के सिवा अब कुछ नहीं है. जिसने मेरी आधी अधूरी स्टोरी को कितनी मेहनत से अन्य सामग्री से सजाया होगा. हालाँकि मैंने बिना पिए कोशिशें की मगर सूरत नहीं बदली.

एक हज़ार साल पहले दोहा साहित्य की प्रसिद्द विधा था. हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण में संकलित एक श्रृंगार रस का दोहा याद आ गया है.
प्रिय-संगमि कउ निदड़ी पिअहो परोक्खहो केम
मईं विन्निवि विन्नासिआ निद्द न एब न तेम्ब।
प्रिय के संगम में नींद कहाँ ? प्रिय के परोक्ष नींद कहाँ ? मैं दोनों प्रकार से नष्ट हुई, नींद न यों, न त्यों.

मेरा भी बस ऐसा ही हाल था कि प्रिय नहीं थी तो नींद भी नहीं थी और प्रिय मिल जाये तो नींद कहाँ ? कल सात सौ किलोमीटर दूर से मेरे बचपन के दोस्त अमर को मेरे घर आने का अवसर मिला. वह सत्तर वसंत देख चुकी अपनी माँ के साथ आया था. बाईस साल बाद घर आये इस दोस्त की पापा से मिलने की बड़ी ख्वाहिश थी. घर में आते ही मैंने कहा अमर तुम सही दिन पर आये हो... आज पापा की दूसरी बरसी है. उसने तीन साल की उम्र में अपने पापा को खो दिया था और महीना भर पहले अपने जीजा को...

ज़िन्दगी अजब सवाल करती है और शराब उन्हें याद रखने का हौसला देती है.




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स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...