मेरे कंधे पर शाम की छतरी से टूट कर दफ़अतन गिरा एक लम्हा था। एक चादर थी, चाँद के नूर की और उसकी याद का एक टुकड़ा था। मैं उलटता रहा इंतज़ार की रेतघड़ी। रात के बारह बजे उसने कहा ये मुहब्बत एक जंगल है और तुम एक भी पत्ती नहीं तोड़ सकते। नहीं ले जा सकते अपने साथ कुछ भी... याद ने खाली नहीं किया बेकिराया घर मैं उम्मीद की छत पर टहलता ही रहा। पड़ोस की छतों पर बच्चे सो गए केले के छिलकों की तरह रात का कोई पंछी उड़ रहा था तनहा। मेरे सेलफोन के स्क्रीन पर चमकते रहे थे चार मुकम्मल टावर जैसे किसी कॉफिन के किनारे लगे हुए पीतल के टुकड़े। और एक वहम था आस पास कि किसी को आना है। *** पाप की इस दुनिया में दुखों की छड़ी से हांकते हुए ईश्वर ने लोगों से चाहा कि सब मिल कर गायें उसके लिए। शैतान ने अपना अगला जाम भरते हुए देखा कि ईश्वर की आँखें, उससे मिलती जुलती हैं *** तुम ख़ुशी से भरे थे कोई धड़कता हुआ सा था तुम दुःख से भरे थे कोई था बैठा हुआ चुप सा. *** सब कुछ उसी के बारे में है चाय के पतीले में उठती हुई भाप बच्चों के कपड़ों पर लगी मिट्टी अँगुलियों में उलझा हुआ धा...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]