मुझे लंबी छुट्टी चाहिए कि मैं बहुत सारा प्रेम करना चाहता हूँ। मैंने सुकून के दिन खो दिये हैं। मैंने शायद लिखने के आनंद को लिखने के बोझ में तब्दील कर लिया है। मैं किसी शांत जगह जाना चाहता हूँ। ऐसी जगह जहां कोई काम न हो। जहां पड़ा रहूँ बेसबब। शाम हो तो कभी किसी खुली बार में बीयर के केन्स खाली करता जाऊँ या फिर कभी नीम अंधेरी जगह पर विस्की के अच्छे कॉकटेल मेरे सामने रखे हों। कभी न खत्म होने वाली विस्की...
सपने में आई उस सुंदर स्त्री के केश खुले हुए थे और वे दोनों कंधों के आगे पीछे बिखरे हुए थे. ऐसा लगता था कि उन केशों को इसी तरह रहने के लिए बनाया हुआ था. सपने में उस स्त्री का कोई नाम नहीं था. उसके बारे में बात करने के लिए मान लेते हैं कि उसका नाम गुलजान था.
जब उसकी चीखने जैसी आवाज़ सुनी तब मैं स्नानघर में नहा चुका था या शायद नहाने की तैयारी में था. वह आवाज़ हमारे सोने वाले कमरे से आई थी. मैंने तुरंत स्नानघर का दरवाज़ा खोला और एक तोलिया लपेटे हुए कमरे की तरफ आया. जिस जगह पर खड़ी होकर आभा साड़ी बांधती हैं. उसी जगह, उसी अलमारी की तरफ मुंह किये हुए गुलजान खड़ी थी. उसके पास ही एक बलिष्ठ गोरे रंग का आदमी खड़ा था.
हष्ट-पुष्ट देह वाले उस आदमी ने गुलजान की साड़ी को खींच लिया था और वह शयन कक्ष के पीछे वाले दरवाज़े से भाग कर घर के पिछवाड़े में अपने शरीर को हाथों से ढांप कर खड़ी हुई थी. वह रो नहीं रही थी. उसने अपने हाथों की कोहनियों को पेट से चिपकाया हुआ था. उसके पास खाकी या ऐसे ही किसी रंग के कागज़ का बड़ा टुकड़ा था. जैसे वह अपने शरीर को छुपा रही हों.
मैंने उस आदमी को गले से पकड़ कर लगभग उठा लिया. उसे किसी तरह घर के पिछवाड़े में उस तरफ ले गया जहाँ गुलाजान खड़ी थी. उसकी आँखें हैरत से भरी थी मगर जैसी मैंने चीख सुनी थी वैसा भय अथवा भय से उपजे बाकी सारे भाव उसके चहरे पर नहीं थे. मैंने उस आदमी को एक छोटी दीवार पर पटक दिया. उसका गला दबाते हुए मैंने एक बार गुलजान की तरफ देखा. वह वैसे ही खड़ी थी.
मैं इन दिनों बड़े लम्बे समयांतराल के बाद फुरसत जैसे हाल में आया हूँ. मैंने इस साल जनवरी से लेकर सितम्बर के पहले सप्ताह तक बहुत सारे काम किये. बेसलीका जीवन जीया. खूब सारी शराब पी. खूब सारे शब्द लिखे. खूब सारा सोचा... ताज़ा मिली इस फुरसत को बढ़ाने के लिए कल सुबह कुछ दिनों के लिए एक सोशल खाते से अवकाश ले लिया. शाम बिना पावर सप्लाई के चल रहे स्टूडियो में बीती. बंद कमरे में जब वातानुकूलन यन्त्र न काम कर रहे हों तो बैठना मुश्किल हो जाता है. मैं बाहर चला आया. मैंने आती हुई रात के रंग को देखा. मैंने इंतज़ार किया और बहुत सारा सोचा. इसीलिए शायद रात को ऐसे सपने में खो गया था.
इसके बाद मैं किसी मोर्चे के लिए जमा हुए लोगों के बीच था. वे किसी राजनैतिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आंदोलनरत थे. उस भीड़ के बीच एक विद्यालय की बच्चों से भरी हुई बस बेतरतीब भागने लगी. मैंने देखा तो पाया कि वह बस एक फौजी टैंक जैसे आकार की है. उसमें बैठे हुये बच्चे अगुआ किए जा चुके हैं. उस पर कोई भी गोली असर न करेगी. मैं अपनी जेब पर हाथ रख कर देखता हूँ. वहाँ पर एक छोटा माउजर रखा है. मुझे नहीं मालूम कि उसमें कितनी गोलियां हैं.
भीड़ के बीच बच्चों की वैन ठीक मेरे पास से गुजरी और मैंने ड्राईवर को गोली मार दी. इसके बाद खाली मैदान में कुछ लोगों की भगदड़ जैसे दृश्य के बीच मैं किसी ओट की तलाश में भागने लगा. एक छोटी चट्टान के पीछे कूद पाने से पहले कई बार गोली चलाई. कुछ गोलियां मेरा पीछा कर रही थी. मैं भयभीत न था. मैं एक जरुरी काम में लगा हुआ नौजवान था.
अचानक से लगा कि मौसम बहुत सर्द हो चला है. हवा सख्त और बेहद ठंडी है. मैं घर के पहले माले में बने छोटे भाई के बेडरूम में एक लम्बे चौड़े डबल बैड पर सो रहा था. पंख तेज घूम रहा था. मैंने कुछ ओढ़ नहीं रखा था. मैंने देखा कि नीले रंग की जींस और एक बिना बांह वाली सफ़ेद बनियान पहने हुए सो रहा हूँ. मैंने कल शाम को जो जींस पहनी थी, वो ये नहीं थी. यानी मैंने घर आकर दूसरी जींस पहनी और सो गया था. मेरे हाथ की अँगुलियों में हेमंत के लगाये हुए पान की खुशबू थी. ये पान कल रात को एक सहकर्मी ने दिया था.
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मैं घर से भाग जाना चाहता हूँ। मुझे ये हाल ओ हालत रास नहीं आते। मैं तनहाई चाहता हूँ एक जानलेवा तनहाई। मुझे एक ख़ामोशी चाहिए। मैं इस तरह के सपने देखते हुये नहीं सोना चाहता हूँ। मुझे रास्तों की तलाश है। मुझे कोई पुकार रहा है।
मुझको यारों न करो रहनुमाओं के सुपुर्द
मुझको तुम रहगुज़ारों के हवाले कर दो। "अब्दुल हमीद अदम"
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[तस्वीर घर के बैकयार्ड में एक गमला और उसमें रखे लोहे के टुकड़े]