यही रोज़गार बचा है मेरे पास

मेरे कंधे पर शाम की छतरी से टूट कर दफ़अतन गिरा एक लम्हा था। एक चादर थी, चाँद के नूर की और उसकी याद का एक टुकड़ा था। मैं उलटता रहा इंतज़ार की रेतघड़ी। रात के बारह बजे उसने कहा ये मुहब्बत एक जंगल है और तुम एक भी पत्ती नहीं तोड़ सकते। नहीं ले जा सकते अपने साथ कुछ भी...

याद ने खाली नहीं किया बेकिराया घर
मैं उम्मीद की छत पर टहलता ही रहा।

पड़ोस की छतों पर
बच्चे सो गए केले के छिलकों की तरह
रात का कोई पंछी उड़ रहा था तनहा।  
मेरे सेलफोन के स्क्रीन पर
चमकते रहे थे चार मुकम्मल टावर
जैसे किसी कॉफिन के किनारे लगे हुए पीतल के टुकड़े।

और एक वहम था आस पास कि किसी को आना है।
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पाप की इस दुनिया में
दुखों की छड़ी से हांकते हुए
ईश्वर ने लोगों से चाहा
कि सब मिल कर गायें उसके लिए।

शैतान ने अपना अगला जाम भरते हुए देखा
कि ईश्वर की आँखें, उससे मिलती जुलती हैं
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तुम ख़ुशी से भरे थे
कोई धड़कता हुआ सा था
तुम दुःख से भरे थे
कोई था बैठा हुआ चुप सा.
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सब कुछ उसी के बारे में है
चाय के पतीले में उठती हुई भाप
बच्चों के कपड़ों पर लगी मिट्टी
अँगुलियों में उलझा हुआ धागा
खिड़की के पास बोलती हुई चिड़िया।

सब उसी के बारे में है, जो है ही नहीं।
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वह जो उगता है मेरे सिरहाने
और मेरे ही पैताने डूब जाता है

किसी टूटे हुये ख़याल का नुकीला टुकड़ा है।
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मुझे प्यार है आती हुई सर्दियों से
कि कुछ फूल इसी रुत में खिला करते हैं
खास कर वह फूल, जो होता है
बैगनी और आसमानी के बीच के रंग वाला।

इसी रंग की एक सायकिल थी उसके पास।
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उदास शाम को
ज़रा स्पाईसी करने के लिए
खीरे के टुकड़ों के बीच रख लेता हूँ
एक साबुत हरी मिर्च
जैसे शादी शुदा लोग प्रेम जैसी आफत रख लेते हैं दिल में।

फिर मैं नए नए अफ़सोसों को रखता जाता हूँ
बालकनी के कोने में रखी टेबल पर करीने से
और वहीं पर हर शाम लड़ी जाती है एक आखिरी लड़ाई।

और तुम तो वहाँ आना ही मत.. कि यही रोज़गार बचा है मेरे पास।
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उसने कहा कि तुम्हारे पास
एक सुंदर बीवी, दो बच्चे और अब एक उधार का घर भी है।

शैतान ने इस माया के महल से लगा दी छलांग

इन्द्र के मदिरा भरे प्याले में, पाप और पुण्य एक हो गया।
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