एक छोटे से जीवन में कितने तो लोग आते हैं और जाने कितना कुछ टूटता बिखरता जाता है। किसी भी नुकसान की भरपाई कभी नहीं होती। कुछ नुकसान तस्वीरों की शक्ल में पड़े रहते हैं किताबों के बीच या बंद दराज़ों में, बाकी सब दिल की टूटी फूटी दीवारों पर, गीली भीगी आँखों में।
कुछ लोग किसी दुआ की तरह आते हैं और फिर हवा के झौंके की तरह चले जाते हैं। हमारे साथ फिर भी सारी दुआएं चलती ही रहती हैं, बरगद की छाँव जैसे शामियाने की तरह। दुःख बनाये रहते हैं दुआओं के बरगद की जड़ों में अपनी बाम्बी कि ज़िंदगी कभी भी दोनों तरफ़ से एक जैसी नहीं हुआ करती है।
कुछ जो जीवन में आते हैं अचरज और हैरत की तरह, वे ज़िंदगी के मर्तबान से चुरा ले जाते हैं सारे अहसास, बचा रहता है उदासी से भरा हुआ तलछट, सूना और बेरंग। बस ऐसे ही हो जाते हैं सब दिन रात। कोई करता रहता है इंतज़ार कि उन गए हुये लोगों के लिए एक दावत कर सके। मगर ये ख़्वाहिश कभी नहीं होती पूरी कि उसके लिए उनका फिर से आना ज़रूरी है। हैरत और अचरज की तरह।