तुम्हारे लिए
एक खुशी है
फिर एक अफसोस भी है
कि कोई लगता है गले और
एक पल में बिछड़ जाता है।
खिड़की में रखे
सलेटी रंग के गुलदानों में
आने वाले मौसम के पहले फूलों सी
इक शक्ल बनती है, मिट जाती है।
ना उसके आने का ठिकाना
ना उसके जाने की आहट
एक सपना खिलने से पहले
मेरी आँखें छूकर सिमट जाता है।
कल रात से
मन मचल मचल उठता है,
ज़रा उदास, ज़रा बेक़रार सा कि ये कौन है
जो लगता है गले और बिछड़ जाता है।
एक ख़ुशी है, फिर एक अफ़सोस भी है।
* * *
* * *
मैंने इंतज़ार की फसलों के कई मौसम गुज़रते हुये देखे हैं। उदासी के सिट्टों पर उड़ती आवाज़ की नन्ही चिड़ियाओं से कहा। यहीं रख जाओ सारा इंतज़ार, सब तरफ बिखरी हुई चीज़ें अच्छी नहीं दिखती।
उसी इंतज़ार की ढ़ेरी पर बैठे हुये लिखी अनेक चिट्ठियाँ। उसने चिट्ठियों पर बैठे शब्दों को झाड़ा और उड़ा दिया खिड़की से बाहर। मैंने दुआ की उसके लिए कि कभी न हो ऐसा कि वह ढूँढता फिरे उन्हीं शब्दों की पनाह।