उनींदे की तरकश से


किसी शाम को छत पर बैठे हुये सोचा होगा कि यहाँ से कहाँ जाएंगे। बहेगी किस तरफ की हवा। कौन लहर खेलती होगी बेजान जिस्म से। किस देस की माटी में मिल जाएगा एक नाम, जो इस वक़्त बैठा हुआ है तनहा। उसको आवाज़ दो। कहो कि तनहाई है। बिना वजह की याद के मिसरे हैं। रेगिस्तान में गीली हवा की माया है। पूछो कि तुम कहीं आस पास हो क्या? अगर हो तो सुनो कि मेरे ख़यालों में ये कैसे लफ़्ज़ ठहरे हैं....

तुम्हारे आने तक 
सब्र के आखिरी छोर पर रखा
एक तवील उफ़
एक काले रंग का रेगिस्तान का तूफ़ान।
****

चूने की मूरत 
उखड़ती हुई पपड़ियों से झांकते
अतीत के ललाट पर लिखी हुई
सदमों की कुछ छोटी छोटी दास्तानें।
***

जादूगरी 
तनहा बैठे गरुड़ के पंखों के नीचे
छुपी हुई उदासी जैसी, सीले दिनों की कोई शाम 
रखता हूँ अपने पास
कई बार ख़ुशी के लिए ऐसे टोटके काम आ जाते हैं।
****

किस्मत
वे अनगिनत तीर उड़ गए थे
किसी उनींदे की तरकश से
उन पर लिखा था जाने किसका नाम
मगर हवा बह रही थी, मेरी ही तरफ।
***

अज्ञान 
मुसाफिर जानता है
सूरज बुझ जायेगा रेत के कासे के पीछे
प्रेम को इसके बारे में, कुछ भी नहीं पता।
***
[Image courtesy : Natasha Badhwar]

Popular Posts