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बरबादी का भागीदार


मेरी पास पुख्ता वजह है सिर्फ अपने आप से नाराज हो जाने की मगर मुझे अब तक सिखाया यही गया है कि मिल जुल कर करने से काम आसान और बोझ हल्का हो जाता है। इसलिए कुछ नाराजगी थोप देता हूँ तुम्हारे ऊपर, कुछ तुमको भी बना लेता हूँ मेरी इस बरबादी का भागीदार। 

मैं एक गुपचुप डायरी लिखता हूँ
ईश्वर का नाम लेकर
ताकि लिख सकूँ, सही सही ब्योरे।

उस डायरी में लिखता हूँ
कि आंसुओं की भी बन सके बेड़ी
तुम भी गिर पड़ो मुंह के बल कभी, मेरी ही तरह।

कहो, आमीन।
* * *

एक दिन आप रो रहे हों
महबूब के घर की खिड़की के सहारे बैठे हुये
और अंडे को फ्राई करते हुये आपका महबूब सोचे
कि ये किसी मुर्गे के रोने की आवाज़ है।

कि अक्सर इसी तरह की बेखयाली के साथ
मेरे महबूब, तुमने भी किया है प्यार मुझसे।
* * *

मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया जीवन में
जिसे मैं बता सकूँ अपने बच्चों को।

तुम्हारे बारे में बताना नहीं चाहता हूँ कुछ भी।
* * *

न्याय के लिए कटघरे में खड़े हुये
कितना असहाय हूँ मैं

कि जो भी बातें मालूम हैं मुझे, सिर्फ तुम्हारा बचाव करती हैं।
* * *

ये सिर्फ उसी आदमी का काम न था
मेरी भी कुछ रज़ा थी शामिल, अपनी इस बरबादी में।
* * *

कई बार हम राजनैतिक चुनाव की तरह
हार जाते हैं दिल
उम्र भर कुछ न कह सकने के हाल में बंधे हुये।
* * *

कई बार कुछ चीज़ें सिर्फ शोक संदेश की तरह
खड़ी होती हैं हमारे सामने
जबकि हम सोच रहे होते हैं किसी नयी शुरुआत के बारे में।

जैसे कि दिल का धड़कना भी ले आता है, बरबादी उम्र भर की।
* * *

ये तय है कि हर रिश्ते को बनाने के लिए
चाहिए थोड़ी सी पूंजी
जैसे मुस्कान, स्पर्श की कामना या कुछ ऐसा ही।

प्रेम के लिए सब कुछ पड़ जाता है, कम।
* * *

एक गरीब आदमी
प्यार के व्यापार में कूद कर कर देता है
सारा खेल तबाह।

मार्क्स ने इसके बारे में कुछ नहीं लिखा है
पूंजी की पहेली में
और सब कुछ क्यों लिखना चाहिए मार्क्स को ही।
* * *

ये सब तुम लिख नहीं रहे हो
बल्कि तुम्हें चुना गया है इस काम के लिए।

खरगोश ने महुआ के पेड़ की तरह
दिल पर लगाया एक और चीरा गर्व से
ताकि सूख न जाए दिल की दवात।

ईश्वर ने झुक कर सलामी दी खरगोश को
उसकी इस प्रतिबद्धता के लिए।
* * *

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