तुम्हारा इंतज़ार है...

चिड़िया ने दो बार कमरे का फेरा लगाया और आखिर पर्दे पर लटक कर कमरे का मुआयना करने लगी। दूसरी चिड़िया ने दोपहर में पढ़ी जाने वाली कोई दुआ पढ़ी। मेरी बेटी ने कहा पापा देखो ये चिड़ियाएं। उसने हाथ से इशारा किया और उनको उड़ा दिया। वे रोज़ दरवाज़ा खुला देखते ही घर में आने लगी। कल सुबह मैंने चिड़िया से कहा कि ये घर न होता तो शायद यहाँ कोई पेड़ खड़ा होता और तुम उस पर अपना घर बना लेती। लेकिन ये संभव नहीं है क्योंकि सब प्राणियों को रहने के लिए किसी आसरे की ज़रूरत होती है। ये घर मेरा आसरा है। मैं तुम्हारे लिए एक घर बालकनी में बना दूंगा। चिड़िया अकेली थी। उसने कुछ कहा जो मैं समझ नहीं पाया। 

घर के पीछे खाली ज़मीन पर पेड़ बनने की उम्मीद में खड़े हुये कुछ पौधे हैं। कुछ वाइट स्पाएडर लिली और कहीं कहीं आशाओं के टुकड़ों जैसी दूब बची हुई है। वहीं एक टीन की छत वाला कमरा है। इसमें पापा की मोटर सायकिल जैसे कई समान पड़े हुये हैं। इस सारे सामान में चीज़ें कुछ ऐसी है कि उनको ठुकरा दिया गया है मगर किसी रिश्ते की याद की तरह बची हुई हैं। वे चुप और मुखर होने के बीच के हाल में हैं। डायनिंग टेबल पर खाना परोसने के काम आने वाले हॉट केस और कटोरियाँ देखते ही मुझे लगा कि इनसे एक छींका बनाया जा सकता है। मैंने माँ को आवाज़ दी। माँ मैं एक ऐसा छींका बनाना चाहता हूँ जिसमें चिड़िया अपना घर बना सके। माँ और मैं मिलकर कई सारी चीज़ों को देखते हैं। सबसे आखिर में हमें एक मिट्टी का ऐसा कुल्हड़ मिल जाता है जो सबसे अधिक उपयोगी हो सके। मैं और माँ मिलकर घर के पहले माले पर बालकनी में लगी जाली में सबसे ऊपर उस कुल्हड़ को तिरछा बांध देते हैं। वह चिड़िया कपड़े सुखाने के लिए बांधे हुये तार पर बैठी ये सब देखती रहती है। मैं चिड़िया के लिए बनाए इस नए घर की तस्वीर लेने के बाद आभा से कहता हूँ एक मेरी भी फोटो ले लो। 
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पीले रंग के तलवों और हरे रंग की पट्टियों वाली चप्पल पहने हुये। अजरक प्रिंट का सलवार कुर्ता पहने, हाथ में काले फ्लिप कवर वाला मोबाइल और पीठ पर एक कैरी बैग टाँगे हुये एक औरत बस के पीछे से अहमदाबाद जाने वाली सड़क पर बढ़ गयी। जयपुर जाने वाली बस ने हल्का सा हॉर्न दिया और मैं बेवजह उस औरत को देखते जाने के खयाल से बाहर आया। सुबह के सात बजने को थे। मैं बंद पड़ी दुकानों के आगे पेढ़ी पर बैठा हुआ था। मुझे कुछ फलों का रस चाहिए था। कल से मेरे बेटे की तबीयत ठीक नहीं है। वह शाम को रो रहा था। उसे बेहद तकलीफ थी कि कुछ खा भी न सका। वह खाली पेट था इसलिए उसे कल पूरी दवा भी नहीं दी जा सकी। 

हर शाम सूरज के डूब जाने के वक़्त पश्चिम में पहाड़ से चार हाथ ऊपर एक तारा उगता है। वह लम्हा मुझे बेहद प्रिय है। इतने बड़े आसमान में एक अकेला तारा। वह किसी निर्मल प्रेम की तरह इकलौता आसमान में जड़ा रहता है। मैं उसे अपलक निहारता हूँ। थोड़ी ही देर बाद एक छोटा तारा नुमाया हुआ करता है। इसके बाद मैं आसमान में तारे देखना बंद कर देता हूँ। मुझे लगता है कि महबूब के पास अब बहुत सारे लोग आ बैठे हैं। अब चलो फिर से तन्हा हो जाएँ। 

इधर बेटे के गालों से आँसू पौंछे और उधर से एकलौते तारे का जवाब आया। तुम यहाँ से चले जाओ। मैं मनाता रहा मगर वह नहीं माना। उस बातचीत के बीच में बेटे को प्यार किया कि प्रेम से बड़ी कोई दवा नहीं है। मैंने बार बार खुद को याद दिलाया शांत रहो। डोंट गिव अप। मैंने इस बीच कई बार बेटे के गालों को सहलाया। जबकि मुझे भी ऐसी ही ज़रूरत थी। मैंने खुद से कहा कि इस तनाव में याद रखो कि तुम्हें फिर से उन्हीं गुलाबी गोलियों के पास नहीं जाना है। तुमको किसी पर चिल्लाना नहीं है। बेटे को प्यार करते जाओ। अपना कूल बनाए रखो। अवसाद की बारीक रेखा के इस और उस पार होती हुई, शाम ढलती रही। मैंने वर्तमान की झूलती हुई रस्सी पर अतीत के अनुभवों के बांस को थामे रखा। 

शाम बीत गयी। अकेला तारा असंख्य तारों के बीच टिमटिमाने लगा। मैं हताश और असहाय, खुद को देखने लगा। छत पर शहर की रोशनी थी। ये चाँद के देरी से आने के दिन हैं। ये गरम दिन हैं। मगर मेरे प्यारे दोस्त केसी ये फिर से उलझ जाने के दिन नहीं है। कोई लाख सताये तो तुम लाख बरदाश्त करते जाओ। अचानक वह फिर पुकारता है। मैं बेटे को मना लेता हूँ कि कमरे का ऐसी चला लेना चाहिए। तुमको आराम आएगा। आज की शाम बहुत गरम है। वह मान जाता है। मैं खिड़की और दरवाज़े पर परदा टांग देता हूँ। 
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दिन में कुल्हड़ के बांधते ही चिड़िया ने उसका मुआयना किया और तुरंत अपनी चोंच में घर बनाने का सामान लेकर आ गयी। मैं खुश हुआ। मैंने शायद किसी को आसानी से जीने में मदद की थी। मैंने सोचा कि आत्मा जैसी कोई चीज़ होती होगी तो प्रसन्न हो जाएगी। चिड़िया मुझे दुआ देगी। माँ खुश रहेगी। शाम के वक़्त इस खुशी की याद भर बाकी थी। मैं बहुत उदास था। गुंजलक ख़यालों में छत पर टहलता हुआ। मुझे याद आया कि हाँ अच्छी विस्की और बेहतरीन वोदका रखी हुई है। विस्की दिल्ली की एक दोस्त ने मनोज के हाथों भिजवाई थी। मनोज ने अपनी पसंद की ऐबसोल्यूट वोदका भी उसी के साथ भिजवा दी थी। मेरे पास शाम थी, मन नहीं था। बेटा रोते रोते सो गया था। मैंने उसे पेट दर्द कम करने की एक दवा खाली पेट ही दे दी थी। मैं छत पर घूम रहा था। मैं सोच रहा था कि ज़िंदगी की ये शाम कितनी बेकार शाम है। फिर खयाल आया कि इससे अधिक बेकार हो जाने की खूब जगह है इसलिए शाम तुम्हारा शुक्रिया कि तुम इतनी ही बेकार हो। 
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सुबह के ग्यारह बज गए हैं। बेटा ठीक है। उसने फलों का रस पी लिया है और मूंग चावल की खिचड़ी भी खाई है। मैं कुछ लिखने और सोच पाने के बीच उलझा हुआ अब तक जाने क्या कुछ लिख चुका हूँ। बार बार उठकर बाहर बालकनी में जाता हूँ और देखता हूँ कि चिड़िया ने अपना घर कितना बना लिया है। लेकिन वहाँ कल दोपहर से एक ही चिड़िया है अपने साथी के इंतज़ार में... मैं डर रहा हूँ।
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[तस्वीर में जो चिड़िया है, इसके लिए दुआ की ज़रूरत है]