इससे पहले कि हमारे मुख़ालिफ़ीन सफ़्फ़ाकी से मुक़र्रर करें हमारे लिए सज़ा-ए-मौत हम रूहों में तब्दील हो जाएंगे ००००० रवि कुमार वह एक सच्चा आदमी था. मैंने कल शाम उसके न रहने की ख़बर पढ़ी. मैंने अपने दायें बाएं देखा कि क्या वह चला गया है? पाया कि वह मेरे आस पास है. लेकिन जो प्रियजन उसे देख पाते थे वे उसकी छुअन से वंचित हो गए हैं. अब उसकी बाँहों के घेरे बेटे और बेटी को केवल स्मृतियों में ही मिल पाएंगे. उसके भीगे होंठ एक याद बनकर रह गए हैं. साथियों के कन्धों पर रखा रहने वाला हाथ एक भरोसा भर रह गया है. मन तो कहीं न जा सकेगा लेकिन छुअन चली गयी है. * * * अड़-अड़ के वाणी हुई, अडियल, चपल, कठोर। सपने सब बिखरन लगे, घात करी चितचोर॥ चित्त की बात निराली तुरुप बिन पत्ते खाली चेला चाल चल रहा गुरू अब हाथ मल रहा सुनो भाई गप्प-सुनो भाई सप्प। नाटककार कवि और संस्कृतिकर्मी शिवराम का निधन दो हज़ार दस में हुआ. उनके निधन के कुछ एक साल बाद अड़ अड़ कर आती वाणी कोमा में चली गयी, चेला ने गुरु को गुड़ कर दिया और ख़ुद शक्कर हो गया. एक दूरदर्शी ने इतनी सच्ची गप कही कि ज़माने ने...