अक्सर ज़्यादा लेना चाहा
और तुम्हारे दिल को कम-कम तोला।
मेरा मन एक बे ईमान का तराजू था।
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अब लैपटाप के किनारों पर पड़ी बारीक गर्द को देखते हुये सोचता हूँ कि कब से इसे पोंछा नहीं है। ठीक ऐसे ही कभी-कभी सोचता हूँ कि हम आख़िरी बार कब मिले थे।
नींद से जागता हूँ तो याद आता है कि एक संदशे में लिखा था। "आप अच्छे आदमी हैं।" अगली नींद से जागते ही याद आता है कि कोई मेल था। "एक आदमी को स्टेज पर गाते हुये देखा तो अचानक आपकी याद आई। उसकी तस्वीर भेज रही हूँ। देखना" उसकी अगली नींद से जागते ही याद आता है कि कौन था जिससे कुछ बात हुई। जवाब न देने के बारे बात।
स्कूल के रास्ते में एक रेलवे ठोकर थी। माने जहां से आगे पटरी कहीं नहीं जाती। वहाँ तक रेल का इंजन आया करता था। उसे वापसी की दिशा में मुड़ना होता था। उस ठोकर पर बैठने से रेलवे फाटक की ढलान और बहुत सारे कच्चे घर दिखते थे। वो बहुत अजीब जगह थी कि जहां से बहुत कुछ देखा जा सकता था मगर आगे जाने का रास्ता बंद था।
जैसे ये उम्र है। यहाँ से कुछ अधिक दिखाई देता है लेकिन कहीं जाया नहीं जाता।
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बाद के दिनों में वो ठोकर नहीं रही। रेल इंजन दोनों दिशाओं में समान रूप से काम करने लगे। वे ठोकर तक नहीं आते थे। जहां खड़े होते वहीं से मुड़ जाते थे। रेल के डिब्बों के गहरे लाल रंग पर नए रंग चढ़ गए थे। हमने भी रेलगाड़ी को प्रेम की जगह एक ज़रूरत समझ लिया। हम रेलगाड़ी तक जाते थे लेकिन केवल अपनी जगह खोजते थे। हमने रुक कर रेल गाड़ी को कभी नहीं देखा। जब हमें रेलगाड़ी में नहीं जाना होता था तब तक के लिए हमने उसे भुला दिया।
एक रोज़ हमें प्रेम करने की भूल के लिए माफी मांग लेनी चाहिए।
मुझे उन संदेशों का क्या कोई जवाब देना चाहिए था। या मेरा हर बात पर एक स्माइली बना देना अच्छा है। कभी और अधिक कहने को हुआ तो कह देना कि आप अच्छी हैं। और भी बात हो जाए तो कहना, हम कभी ज़रूर बात करेंगे। लेकिन मैंने सोचा कि मैं एक लालची आदमी हूँ। मेरा मन अब भी वैसा ही है। मैं एक रेल की ठोकर की तरह खड़ा हूँ और इसकी अब ज़रूरत नहीं है।
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