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आदमी से बेहतर


के सी मेरी फेसबुक प्रोफ़ाइल है। ये बस इस काम आती है कि वहां से सुंदर चेहरे देख पाता हूँ। वहीं से मन के अपशिष्टों की कथाएँ सुनाई देती हैं। वहीं से देख पाता हूँ कि राष्ट्रवाद की जय करने वाले असल में राष्ट्रवादी होने से पहले जातिवादी हैं।

मैं अपने फेसबुक पेज पर मैं अपना मन लिखता हूँ मगर कभी-कभी दूसरों का मन देखने को चाहूँ तो अपनी प्रोफाइल पर चला जाता हूँ। आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है, ऐसा मुझे व्हाट्स एप पर मिले सन्देशों से पता चला। मुझे कृष्ण भक्त कवियों की याद आई। मैंने कुम्भनदास जी को याद करते हए एकपोस्ट लिख दी। ये मन की बात थी।

इस पोस्ट के साथ लगी तस्वीर में नन्हा बिलौटा मेरी ओर देख रहा है। हमारा रिश्ता ये है कि उसे समझ आया है कि वह मेरे पास रहेगा तो उसे खाना मिलेगा। वह हर शाम आता है। मैं अपना प्याला भरे बैठा होता हूँ तो वह प्याले को सूंघता है। उसे सूंघकर बुरा मुंह नहीं बनाता। मुझे उसकी इस सहृदयता पर प्रेम आता है। मैं उसे दूध का कटोरा भर देता हूँ।

लालची और स्वार्थी मनुष्यों से हटकर वह दूध स्वीकार लेने के बाद भी मेरे पास बैठा रहता है। वह हरदम चौकन्ना होने के हाव भाव लिए होता है। मैं उसे कहता हूँ- 'हर वक़्त अटेंशन में मत रहा कर इससे दिल पर बोझ बढ़ता है' वह मेरी बात सुनता है और अटेंशन से बाहर आ जाता है। एक आश्वस्ति से भर उठता है। ऐसा मुझे लगता है।

उसके लिये मैं एक खाना देने वाला जीव हूँ जिस पर वह भरोसा करता है। मेरे लिए वह इस दुनिया का एक जीव है जिसे खाना खाने के बाद भी प्रेम करना याद रहता है। वह उन दोस्तों जैसा नहीं है जिन्होंने गहरे प्रणय निवेदन के पश्चात किनारा कर लिया।

इस तस्वीर में हम प्रूफ रिडिंग नहीं कर रहे हैं। मैं उसे बता रहा हूँ कि मेरी एक कहानी बिल्लियां में बिलौटा निर्दयी है कि सहवास की चाहना में बिल्ली के बच्चों को मार डालता है। हालांकि फिर भी वह आदमी से अच्छा है।

बिलौटा इस किताब में इसलिए झांक रहा है कि उसे लगता है यहां भी कुछ खाने लायक है।


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