"मैं आपके साथ एक फ़ोटो खिंचवाना चाहता हूँ"
एक नौजवान ने ऐसा कहा तो मैं उसके पास खड़ा हो गया। उसने अपना फ़ोन सेल्फ़ी मोड में किया तो मैंने कहा- "यहां पर बहुत लोग है कोई भी हमारी फ़ोटो खींच देगा।" फ़ोटो हो जाने के बाद उसने मुझसे पूछा- "आप कौन हैं?"
मैं मुस्कुराया।
"मैं किशोर चौधरी हूँ। रेडियो में बोलने की नौकरी करता हूँ। राजस्थान से आया हूँ" उसने कहा- "मैं बहुत देर से आपको देख रहा हूँ। हर कोई आकर गले मिलता है और फ़ोटो खिंचवाता है।"
मैंने कहा- "ये हमारी याद के लिए है। तस्वीरें हमें मुलाक़ातें और चेहरे याद दिलवाती हैं"
उसने पूछा- "आप करते क्या है?
मैं समझ गया कि उसका आशय है पुस्तक मेला में रेडियो वालों को कोई क्यों गले लगाएगा।" मैंने कहा- "मैं कहानियां लिखता हूँ। उधर देखिए। जो ऊपर एक किताब रखी है वह मेरी है"
नौजवान चला गया। थोड़ी देर बाद किताब साथ लेकर आया। "सर इस पर साइन कर दीजिये" मैंने उनका नाम लिखकर साइन कर दिए।" किताब वापस लेते हुए कहा "मैंने सोचा कि आप कभी बहुत बड़े आदमी हो जाएंगे तब मैं आपके साथ तस्वीर कैसे खिंचवा पाऊंगा। इसलिए आज ही खिंचवा ली"
मैंने शुक्रिया कहा और मुस्कुराया।
हिन्दयुग्म के शैलेश ऐसे ही व्यक्ति हैं जो सबसे प्यार करते हैं। सीखने के अवसर देते हैं। वे ख़ुद लगातार सीखते हैं। हिन्दयुग्म को शैलेश ने अपने दो पांवों पर खड़े रहकर खड़ा किया है। इस स्टॉल पर शैलेश के दोस्त और लेखक असीम स्नेह पाते हैं। हर बार मेले में कोई न कोई पूछता है भाई यहां इतनी फ़ोटो क्यों खींची जाती है।
मुझसे इस बार बहुत नए मित्रों ने कहा कि आप बहुत अच्छा लिखते हैं फिर भी आप सरल और डाउन टू अर्थ हैं। ये बातें सुनकर मैं बहुत देर तक सोचता रहा कि क्या सचमुच इस दुनिया में ज़्यादा लोग केवल दिखावे, अहंकार और दम्भ से भर गए हैं। वे प्रेम से मिलना और बोलना भूल गए हैं।
मुझे तो इसके सिवा कुछ आता नहीं कि प्रेम करते रहो और जब न बने तो बिना शिकवे और अपमान के अलग हो जाओ।
आज इस बरस का मेला सम्पन्न हो जाएगा। अगले बरस हम जाने कहाँ होंगे मगर फिर भी उम्मीदवार हैं कि हम नए पुराने मित्रों से मिलेंगे।
सबका शुक्रिया ❤