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ख़ुश होकर जाओ

मैं था तो शागिर्दी के लायक भी नहीं 
मगर उनकी फ्रेंड रिक्वेस्ट आ गयी है.

फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट वाले बटन पर लाल बत्ती चमकी तो देखा कि सआदत हसन मंटो साहब की ओर से दोस्ती का हाथ आया है. ज़रूर उनके किसी चाहने वाले ने ऐसा किया होगा. 

सआदत हसन मंटो ने अफ़सानों से एक लकीर खींच दी थी. जिसके उस पार अगर दुनिया जा सकती तो मंटों नहीं रोकते. बरसों से दुनिया वहीँ पड़ी हुई थी. वे मेरे कॉलेज जाने से साल भर पहले के दिन थे. फिर कॉलेज जाने लगा तब ख़याल आता था कि इक्कीसवीं सदी आ रही है और मंटो की कहानियां गुज़रे ज़माने की याद भर बनकर रह जाएँगी. मुझे कहाँ समझ थी कि इस रहती दुनिया को उस लकीर के इस तरफ ही जीना है. जहाँ वही सब है जो मंटो लिख गए. मंटो के ज़माने से भी तेज़ कदम और बे हया.

कल मंटोमयी फेसबुक को देखना सचमुच अच्छा था. इधर एक दोस्त ने अपनी पोस्ट को हैशटैग ही मंटोमई दे दिया था. मानो मई का महीना हो तो मंटो के नाम ही होना चाहिए. उन्होंने मंटो के नाटक पढ़ते हुए उनके कुछ हिस्से शेयर किये. वे कुछ एक संवाद पढना ही गहरी सोच में डूब जाने को काफी था. उन पोस्ट्स के साथ मंटो की कहानियों का एक काफिला कदमताल करता हुआ आ ठहरता.

कल जब बहुत सी पोस्ट आ रही थी तो उनको ध्यान से देखता. मैं कहानियों के शीर्षक याद करने लगता. कि ये कौनसी कहानी थी. मैंने पढ़ी या नहीं? मैं ख़ुश था, मंटो को इतना याद किया जाना देखकर. मुझे दूर-दूर तक कोई दोस्त याद न आया जिसने मंटो को न पढ़ा हो.

मेरे पेज* पर आते ही कई बार कुछ दोस्त लगातार पढ़ते जाते हैं. उनको लगता है उनकी ही बातें लिखी हैं. वे उन बातों को शेयर करते हैं. कॉपी पेस्ट करते हैं. टैग करते हैं. पोस्टर बनाते हैं. और जो कुछ उनका किया जा सकता है. कल एक नौजवान आये थे. सुबह उनका संदेशा आया. "सर मैंने आपके पेज से बहुत सारी पोस्ट कॉपी पेस्ट कर ली है और आपको क्रेडिट भी नहीं दिया." मैंने कहा- "कोई बात नहीं. नाम न भी लिखो तो भी चलेगा." वे खुश हो गए.

मेरे साथ ऐसा पहले भी हुआ है. मेरी बातें बेवजह लोगों ने अपने नाम से छाप ली तो मेरे दोस्त नाराज़ हुए. जबकि मैंने कहा- "मेरा लिखा जो कुछ भी है. वह सब अपने नाम से छाप लो." क्या असल में ये कोई ऐसा रचनात्मक उत्पाद है, जिसका कॉपी राइट लिया या दावा किया जाये. क्या मैं अपने लिखे से कुछ यश, धन, लाभ बनाना चाहता हूँ? क्या इस लिखे हुए की उम्र अक्षुण है? मैं अपने ही प्रश्नों के साफ़ जवाब देता हूँ कि ये मेरे क्षणिक आवेश मात्र हैं. मैंने किसी गहरी पीड़ा में कोई कहानी लिखी. मैंने तरल उदासी में डूबते हुए कोई बेवजह की बात कही. मैंने किसी की याद में किसी को कोसना भेजा. मैंने दुआ की कि जाओ खुश रहो. ये अपनी अनुभूतियों को शब्द देना भर था. ऐसा करने पर किसी को प्रिय लगे. कोई उसे बाँटना चाहे. तो क्या बुरा है.

एक रोज़ सब ठाट धरा रह जायेगा.

प्रेम करना. पास बिठाना. मीठे से बोलना. सही बातें बताना. जो ठोकरें खाई हैं, वे सुनाना. अपने अनुभवों के सबक साझा करना. बाहँ पकड़ कर बैठना चाहे तो उसकी भी बाहँ पकड़ना. जाना चाहे तो कहना- खुश होकर जाओ और सदा खुश रहना.

पचास साठ साल बाद कॉपी राइट मर जाता है. मगर लेखक ज़िन्दा रहता है.

ये मंटो साहब के नाम से जिसने भी प्रोफाइल बनायीं है. पढ़ा लिखा है. मंटो के प्रोफाइल कवर पर चार्ली चैपलिन का होना दुखों की पराकाष्ठा है.

लव यू.

Kishore Choudhary Page

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