बाद मुद्दत के अपने घर

बालकनी की जाली से एक काली चिड़िया पिछली कुछ शामों से आ रही थी. जब हम इस घर में नहीं रहते तब भी आती होगी. वह वाशरूम के एग्जास्ट के पास के कोने में दुबक कर बैठती है. मैं शाम होते ही बालकनी में आता हूँ. हम दोनों एक दूजे को देखते हैं. वह सोचती होगी कि ये अचानक कौन चला आया है.

बाद मुद्दत के अपने ही घर लौटने से सवाल खत्म नहीं हो जाते हैं.

सोफ़ा कवर से ढका रहता है मगर गर्द फिर भी आती है. कवर हटाते ही एक धूसर परत दिखती है. कॉफ़ी टेबल के नीचे रखी एक मैगजीन और एक उपन्यास भी उतनी ही धूल से भरे रहते हैं. जितना हमारा बिछड़ना होता है. तुम्हें पता ही होगा कि इंतजार में भी कोई अकेला नहीं होता. तन्हाई कम करने को सब पर गर्द आती रहती है.

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