कभी अचानक आवरण के भीतर झांकने की लत लग जाती है. फिर चीज़ों को बिना खोले भीतर से देखने लगते हैं. जैसे कोई चित्रकार पहले स्केलेटन बनाना सीखता है. उसके बाद मांस-मज्जा. फिर वह कटाव बनाता है. फिर एक ऐसी शक्ल सामने आती है, जिससे हमारा रोज़ का वास्ता होता है. हम चित्रकार नहीं होते हैं. इसलिए देखी हुई चीज़ों को जब उलटे क्रम में खोलते हैं. तब ख़ुद को याद दिलाना चाहिए कि ये सीखना नहीं है. ये असल में चीज़ों के प्रति क्षोभ है. ये उनको नकार देने की हद तक जान लेने की चाहना है.
हम तेज़ी से बदलते हैं, हमें इसपर कड़ी नज़र रखनी चाहिए.
हम तेज़ी से बदलते हैं, हमें इसपर कड़ी नज़र रखनी चाहिए.