सांप चूहे खा जाते हैं। इसलिए बिल्लियां उनको पसन्द नहीं करती। वे उनको मार डालती हैं।
हमारा आकाशवाणी वन विभाग के छोर पर बना है तो बहुत सारे सांप आते रहते हैं। विषैले और विषहीन। इधर बिल्लियां भी रहती हैं। वे अक्सर ड्यूटी रूम के सोफे पर सोई मिलती हैं। उनके बच्चे भी सोफे को बहुत पसंद करते हैं। ड्यूटी रूम में आने वाले मेहमानों को अक्सर याद दिलाना पड़ता है कि देखिए बिल्ली के बच्चे हैं। उन पर न बैठ जाना।
एक शाम को उद्घोषक डरी हुई बाहर गेट तक चली आई। सर प्ले बैक स्टूडियो के दरवाज़े पर मैंने सांप देखा। गार्ड ने कहा कि अभी देखते हैं। सांप कहीं इधर-उधर हो गया। वह लौट कर अंदर जाने लगी तो जनाब फिर से दरवाज़े पर रास्ता खोज रहे थे। वह वापस भागी। सांप को फिर हटा दिया गया। वे स्टूडियो में डर रही थी। उनको कहा कि आप मैं तेरी दुश्मन गीत प्ले कीजिये। अमरीश साहब के आने का सोचकर सांप खिसक लेगा।
एक शाम एक उद्घोषक की उद्घोषणा अधूरी रह गयी। माइक से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ भर आई। वे बाहर आये और बोले। सर स्टूडियो के कंसोल पर फेडर्स के बीच एक बिच्छू आ बैठा है। उनको सुझाव दिया कि बिछुआ मोरे साजन का प्यार गीत चला लें। रूमान से भरकर बिच्छू लौट सकता है।
इधर कोबरा का एक परिवार रहता था। एक को ड्राइवर ने मार डाला। बाकायदा अंधविश्वास की जै जैकार करते हुए उसे अग्नि को समर्पित किया गया। एक कोबरा का हमारे इंजीनियर साथी ने बेहद क्रूरता से अंत कर दिया था। मुझे उसका भी गहरा दुख हुआ।
मैं एक शाम स्कूटर के पास पहुंचा तो कोई चीज़ तेज़ी से हिली। कैरेत फेमिली का छोटा सा बच्चा चेतावनी दे रहा था। दूर रहना प्यारे कहानीकार वरना सारी कहानियां यहीं धरी रह जायेगी। मैंने गार्ड को बुलाया और उनसे कहा कि अपना ख़याल रखियेगा। ये छोटे साहब इधर शिकार पर निकले हैं। इनके भाई बहन भी आस पास होंगे।
रेगिस्तान की रात में उमस के बढ़ते ही बिल में दुबके विषधर बाहर चले आते हैं। कई बार उनको स्टूडियो के बाहर तफरीह करते। बिल्लियों से लड़ते हुए, जान बचाकर भागते हुए देखा जाता है। इधर हैज़हॉग भी बहुत सारे हैं। ये झाऊ चूहे कभी पकड़ में आ जाते हैं तो फिर कोई उनसे बहुत देर तक खेलता रहता है। सावधानी से उठाने पर उनके कांटे नहीं चुभते। वे थोड़ी देर बाद अपनी थूथन को बाहर निकाल कर देखते हैं कि कहां फंस गए हैं। तब थ्री इडियट्स का डायलॉग ज़रूरी होता है। तू अंदर ही रहना चैम्प। बाहर बहुत सर्कस है।
इस सांप को कल रात अपनी जान गंवानी पड़ी है। सुबह से स्टूडियो के दरवाजे के पास इसकी देह पड़ी है। मैं इसकी तस्वीर उतार अंदर आकर बैठ गया। देर तक ख़याल रहे। क्या कुदरत है। कैसा जीवन है। मृत्यु जाने कहाँ प्रतीक्षा में बैठी है। इसी सोच में अभी थोड़ी देर पहले बिल्ली भी ड्यूटी रूम की खिड़की से अंदर आई। जैसे ही उसने मुंह अंदर घुसाया तो मैंने उससे कहा- "हत्यारिन कहाँ से आ रही हो?" उसने मुझे इग्नोर किया है और सोफे पर बैठ गयी है।
जालमा तू बड़ा वो है...