छोटे बच्चे की तरह
अँगुलियों पर जाने क्या गिनता रहता है मन.
उसने कहा- "किशोर सर, स्मार्ट फोन में एक एप है. जो हमारे बोलने को लिखता है और लिखे हुए को पढ़कर सुनाता है. ये कितना अच्छा है" उसकी आवाज़ में उत्साह था. प्रसन्नता भी थी. उसकी ख़ुशी सुनकर मेरी आँखें मुस्कुराने लगी. हालाँकि उसे लिखना आता था. कुछ साल पहले उससे मिला था तब उसने कागज़ पर मेरा नाम उकेर कर दिया था. अपनी अंगुली से अपने ही लिखे उस नाम को पढ़ा, किशोर चौधरी. और फिर ऐसे हामी में सर हिलाया जैसे काम सही हो गया हो.
स्टूडियो में उसने पूछा. "क्या मेरे सामने माइक्रोफोन रखा है?" मैंने कहा- "हाँ आपके सामने है." उसने कहा- "माइक्रोफोन को छूना तो अच्छा नहीं होता न?" मैंने कहा- "आप चाहें तो छू सकती हैं" उसने अपने हाथ को चेहरे की सीध में लाने के बाद सामने बढ़ाया. मुझे लगा कि वो माइक को देख पा रही हैं. इतने सधे तरीके से माइक को छूना, मुझे एक ठहराव से भरने लगा. बेहद नाज़ुकी से उसकी अँगुलियों ने माइक की जाली की बुनावट को चारों तरफ से छुआ. उसके चेहरे पर संतोष था. अचानक कहा- "तो ये है वो माइक जिससे रेडियो पर बोला जाता है"
एलईडी की रोशनी से भरे स्टूडियो की दीवारों पर लगे आवाज़ सोखने वाले परदे चुप थे. हरे रंग की मेज चुप थी. नीला कालीन चुप था. काले चश्मे के पीछे छुपी उसकी आँखें शायद कुछ बोल रही होंगी कि उसके होठों पर मुस्कान थी.
"किशोर सर, यहाँ बैठने के लिए और कुर्सी है तो आप बैठ जाइए. मैं आपसे सुनना चाहती हूँ, ये आल इण्डिया रेडियो है. अब हमारी सभा आरम्भ होती है." मैं हंसने लगा.
इसके बाद मैंने बहुत देर तक उससे बातें की. वे बातें पढने, लिखने और स्याही से भरी ज़िन्दगी को जीने के बारे में थी. मैंने पूछा- "आपको कैसे मालूम होता है कि दिन है या रात?" उसने कहा- "मैं तापमान से पता कर लेती हूँ. दिन और रात में हर समय का तापमान अलग होता है. मुझे उसी से पता चलता है कि सुबह होने को है या शाम ढलने को है या दोपहर में आज कितनी कड़ी धूप है"
उसने कहा- "सर आप रेडियो पर कितना अलग बोलते हैं. ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत बड़ा आदमी बोल रहा है. और आप फोन पर तो ऐसे नहीं बोलते."
मैंने कहा- " फोन पर बोलने के पैसे नहीं मिलते इसलिए..."
हम देर तक हँसे.
एक अक्टूबर की सुबह उगते सूरज की तस्वीर खींची थी. उस तस्वीर को देखकर भी उसकी याद आई. कि वह अपने घर में इस उगते हुए सूरज को महसूस कर रही होगी. हम कितने अभागे हैं कि खुली आँखों से कुछ नहीं देखते, कुछ महसूस नहीं कर पाते.