बाद बरसों के देखते हुए
हालांकि हमें ज्यादा कुछ याद नहीं होता।
फिर भी लगता है कि
उसके चेहरे पर ऐसी उदासी पहले कभी न देखी थी।
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वह हमेशा उल्लास से भरी रहती। एक जगह एक ही भाव में रुकना उसका हिस्सा न था। जब हमने तय किया कि अब आगे हम एक साथ नहीं हो सकते। तब भी उसने ज़रा सी देर चुप रहने की जगह गहरी सांस ली। कुर्सी से उठी और जल्दी में कुछ खोजने लगी।
बाद बरसों के देखा कि वह टेबल पर झुकी कुछ पढ़ रही थी। वह क्या पढ़ रही थी, ये नहीं जाना जा सकता था। इतनी एकाग्रता से उसे पढ़ते हुए कभी नहीं देखा था। वह जो जेब से बाहर दिखते पेन को पसन्द न करती थी, उसी ने पेन को दांतों में दबा रखा था। उसके बाएं गाल पर बहुत ऊपर का बड़ा तिल अब और बड़ा हो गया था। उसके बाल अब भी पहले की ही तरह उलझे थे, यही एक बात नहीं बदली थी।
मैंने अपने पैरों की तरफ देखा। मैंने काले फॉर्मल शू पहने हुए थे। मैंने याद करना चाहा कि सेंडिल पहने घूमना कब बन्द कर दिया था। मैं बदल गया था। मैं बदलना नहीं चाहता था। मैं उसके लिए वैसा ही रहना चाहता था केजुअल सेंडिल, जीन्स और सफेद कमीज वाला।
इससे पहले कि वह मेरे जूते देख लेती, मैंने पीठ फेर ली। मुझे लगा कि मैंने किसी अजनबी के जूते पहन लिए हैं। उन काले फॉर्मल जूतों के साथ तेज़ क़दम मैं उससे बहुत दूर निकल आया।
हालांकि हमारे बीच का सम्बंध बहुत साल पहले से ख़त्म था।
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हम एक रोज़ दोबारा कभी नहीं मिलने के लिए बिछड़ गए थे।
फिर एक सुबह नियति ने हमें एक ही वेटिंग रूम में लाकर छोड़ दिया। बैंच के किनारों पर बैठे हुए दोनों ने शायद कई बार सोचा कि उठ जाएं। मगर जाने क्या बात थी कि कोई नहीं उठ पाया।
मैंने जैसे ही बैकपैक की पट्टियों को पकड़ा, उसने आंखें बंद कर ली। वह मुझे जाते हुए नहीं देखना चाहती थी या मेरे चले जाने के लिए आंखें मूंदे थी। मैं नहीं जानता। मगर उन बन्द आंखों को देखते हुए वेटिंग रूम से बाहर आना आसान था।
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बंद रास्ते अच्छे होते हैं। हम जानते हैं कि लौट जाना है। किन्तु खुले रास्तों पर हताश मन को कभी समझ नहीं आता कि वह किधर जाए।
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