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ये बेदिली कल तक न थी...

ये हर रोज़ का काम होगा और सदा से इसी तरह अजान दी जाती रही होगी. मैंने आज ही सुनी. जबकि मस्जिद, तीसरे चौराहे के ठीक सामने खड़ी है. उन दिनों मेरी उम्र पांच साल रही होंगी. जब इसे पहली बार देखा होगा. मदन लुहार की दुकान से होता, सड़क के किनारे सीमेंट के फुटपाथ पर चलता, अपने पिता को खोजता, उनकी स्कूल तक आ गया था. उस बात को बीते हुए पैंतीस बरस हो गए. चबूतरे वाले नीम के पेड़ के सामने खड़ी स्कूल और पास की मस्जिद एक ही दीवार बांटते हैं. रास्ता दोनों और जाने वालों के कदम चूमता है.

मुझे इस स्कूल के बारे में पुख्ता सिर्फ़ यही पता है कि दूसरी पाली के बच्चे, दोपहर की अज़ान सुन कर गणित का घंटा बजने का हिसाब लगाते हैं. आज मस्जिद से निकलते हुए एक नमाज़ी को देखता हूँ. किसान छात्रावास के पास सायकिलों की दुकान चलता है. ख़ुदा के दरबार में अपनी अर्ज़ी लगा कर फिर से सायकिल के पंक्चर बनाने जाते समय स्कूल की खिड़कियों की तरफ देखता है. उसे याद न आता होगा कि अब तक वह कितनी सायकिलें कस चुका है मगर खिड़कियों से आती आवाज़ों को सुन कर शायद सोचता होगा कि वो माड़साब कितने लम्बे थे.

बच्चों को यकीनन इससे कोई गरज नहीं कि इबादतगाह से उठती पुकारों पर अल्लाह क्या सोचता है. मैं भी उदास मौसम में थके कदमों से चलता रुक जाता हूँ. अपने बेटे का हाथ थामे गन्ने की दुकान के आगे कुछ देर सोच कर लकड़ी की बैंच पर बैठ जाता हूँ. मस्जिद को देख कर उस लड़की की याद आती है. जिसने एक शाम कहा था. "मग़रिब की नमाज़ से उठते ही आपका ख़याल आया..." और फ़िर देर तक चुप रही. बादलों की एक कतार कुछ बूँदें बिखेरते हुए सर से गुजरी तो आसमान की ओर झाँका. उस जानिब, वही न भूला जा सकने वाला सवाल था. पापा, एक दिन सब कहां चले जाते हैं ?

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कल रात 'मिंट थंडर' कॉकटेल बनाया था. स्टील के वाइन ग्लास में पुदीने की हरी पत्तियां, एक मीज़र ड्राई ज़िन, एक मीज़र स्वीट सोफ्ट ड्रिंक और छोटे आईस क्यूब डाल कर लकड़ी के दस्ते से कूट कर बारीक कर लिया. स्टील ग्लास पर ढ़क्कन लगा कर, उस ढ़क्कन के उड़ जाने के अहसास तक शेक किया. प्याले में डाल कर वाईट वाइन के साथ हार्ड सोडा से टॉपिंग कर ली. दिखने में अच्छा हो इसलिए लेमन स्लाइस भी... . तुम पियोगे तो इस लाजवाब स्वाद के मुरीद हो जाओगे मगर मैं दूसरा पैग पूरा न पी सका. कि जब बहुत उदास होता हूँ तो शराब भी दिल से उतर जाती है. सब तरीके बेकार हो जाते हैं. मैं उसे बैकयार्ड में ऐसे ही छोड़ कर डिनर के लिए चला आया था.

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रेशमा को सुनोगी, आयरिश कवि थॉमस मूर की एक खूबसूरत कविता का उर्दू अनुवाद गा रही है.

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स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

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