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वी ओनली सैड गुडबाय विद वर्ड्स...

मृत्यु अप्रतिम है. शोहरत की बुलंदी से एक कदम आगे वाली घाटी के निर्वात में प्रतीक्षारत रहती है. उसका सौन्दर्य मायावी है. पहली नज़र का प्यार है. वह जब अपने गुलाबी हाथों से हमें समेट रही होती है, दर्द बड़ी तेजी से छूटता है. आखिरी साँस के बाद दर्द यहीं रह जाता है प्रियजनों की आँखों में और हम तकलीफों के आवरण से आज़ाद हो जाते हैं. ख़यालों के इसी पैरहन को समेटते सहेजते हुए कल की रात बीती. ये बरसात के इंतजार के दिन है मगर कुछ नहीं बरसता...

रात, एमी वाइनहॉउस की तस्वीरों को देर तक देखा. उसके गोदने देखे. वीडियो देखे. उसकी खबरें देखी. देखा कि उसका स्थान खाली हो चुका है. किसी भी खालीपन को भरा नहीं जा सकता क्योंकि कुदरत के मेनिफेस्टो में लिखा है कि एक जैसे लोग नहीं बनाये जायेंगे. ऐसे में मुझे बेल्ली होली डे और जिम मोरिसन की याद आई. अपनी वो बात भी याद आई कि आदमी के काम करने के दिन सात आठ साल ही होने चाहिए और उसके बाद अपने चाहने वालों से विदा लिए बिना असीम शांति में खो जाना चाहिए. मेरे मन में ऐसा विचार पिछले साल के बेहद उलझे हुए दिनों में आया था. एमी ने इसे फ़िर से कर दिखाया.

उसने ऐसा क्यों किया ? बुलंदियों के शिखर से शराब के प्याले के पैंदे में पड़े ड्रग्स के दलदल में छलांग क्यों लगा दी ? शोहरत की शाख इतनी कच्ची थी या फ़िर अन्तरिक्ष की भारहीनता में दिशा खो गयी थी. स्वर्ण तमगों के ढेर पर बैठे हुए. गीत और संगीत रचते हुए. लाखों दिलों की धड़कनों में गुनगुनाते हुए. दुनिया के लाल कारपेट पर नाजुक बदन के ख़म बिखेरते हुए. आवाज़ के जादू से वशीकरण की सात तहों को बुनते हुए किस वक़्त ये सिरफिरा ख़याल आया होगा कि दुनिया फ़ानी है. ज़िन्दगी पानी में कैद बुलबुला है और तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है.

हमारे बेइंतहा अकेलेपन, टूटन और दिमागी उलझनों में बीतते हुए गुंजलक दिनों को गिनने का कोई पैमाना अभी बना नहीं है. ये एक नामालूम सी बात है कि कब और किस तरह से कोई तनहा हो जाता है. प्रेम जैसे असरदार सिडेक्टिव का कोई अल्टरनेट हम क्यों नहीं बना सके हैं. बंदरों के द्वीप बनाने में क्या मजा है. मनुष्य के एकाकीपन को बढ़ाती जा रही भौतिकता की मार्फीन पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं है ? ऐसे सवालों के सिरों को थामे हुए मैं एमी से रश्क करता रहा कि जाने मेरे अब और कितने गाम बाकी है ?

फ्रांक सिनेट्रा जब आई फील अ ग्लो जस्ट थिंकिंग ऑफ़ यू ऐंड द वे यू लुक टुनाईट... गा रहे होते. उनको सुनते हुए एमी तुम्हें कैसा लगता होगा. क्या कभी सोचा था कि ऐसे ही किसी दिन इतना गहरा और उदात्त गीत तुम ख़ुद गाओगी. सुनने वाले पागल हुए जाते होंगे, ग्रेमी एवार्ड्स की एक कतार तुम्हारी तरफ फिसलती हुई कदम चूमने को आती होंगी ? तुम्हें मालूम होगा एमी कि हमारे कदमों को अक्सर आगे बढ़ने की लत लग जाती है. वे रुक कर दम नहीं भरना चाहते कि रुकने पर उदासी घेर लेती है. इसी उहापोह में सफलताओं के शोर का हथोड़ा खोपड़ी के नीचे के तरल द्रव्य पर अकस्मात प्रहार करता है.

हमारे बचपन के दोस्त, टीन ऐज़ के क्रश, जवानी के महबूब उम्र की हर साँस पर हौंट करते रहते हैं मगर ज़िन्दगी का तम्बोला खेलते हुए सबकी पर्चियां आगे पीछे कटती है. कुछ लोग अब भी कुर्सियों पर बैठे होते हैं कुछ अपना ईनाम लेकर जा चुके होते हैं मगर तुमने अपनी पर्ची को फाड़ दिया. जिम मोरिसन, बेल्ली होलीडे, ब्रिटनी मर्फी, सिल्विया प्लेथ ने भी ऐसा ही किया. ऐसा दुनिया के बहुत से लोग करते हैं. वे आत्महंता हो जाते हैं. उनको बार बार आत्महत्या करने के प्रयासों से बचाए जाने की कोशिशें नाकाम हो जाती है. वे दुनिया से प्रेम और नफ़रत एक साथ करते हैं. शायद कभी कभी दिमाग हमारे चारों तरफ एक ऐसा आवरण रच देता है, जिसमें अहसासों का संचरण नहीं होता.

कोई बात नहीं एमी... शराब पीकर मारपीट करते हुए, अपने लहुलुहान नाक और बदन को पौंछे बिना लन्दन की सड़कों पर रात को आवारा फिरते, नशे के अवसाद की चादर को चूमते हुए, सलाखों के पीछे रात बिताते हुए, पुलिस कोप से ये कहते कि औरतें आपस में आदमियों जैसी ही बातें करती है लेकिन वे थोड़ा ज्यादा जिज्ञासु और गहरी होती हैं. तुमने जो जीया अच्छा जीया, कुछ बेहद अच्छे गीत रचे हैं. तुम्हारी आवाज़ का स्पंदन काल के क्षय से लड़ता रहेगा लेकिन इन दिनों मैं अपनी उदासियों की 'बार' को कुछ समय के लिए बंद कर चुका हूँ. एमी, तुमने गलत समय पर दस्तक दी.

* * *

इस आलेख का शीर्षक, एमी वाइनहॉउस के गीत बैक टू ब्लेक से लिया गया है.
एमपी थ्री सौजन्य : आइसलेंड रिकार्ड्स


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