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न मिला जाँ के सिवा यार ए वफ़ादार

एक तीखे नाक और लम्बे चेहरे वाला हाथ में कलम लिए बैठा हुआ लंबी काठी का आदमी सोच में गुम है. उसके ख़यालों में जाने क्या बहता है, कौन जाने. मैं बस उसकी सूरत को देखता हूँ. इसी किताब को पिछले कई सालों से अपने आस पास पाया है. हम सोचते हैं और थके हुए से लेट जाते हैं. क्या करना है पढकर. क्या पढ़ा हुआ साथ चलेगा. ये उपन्यास है बाबर. बाबर जो एक शायर दिल इंसान था और उसने इल्म और अदब के लिए खूब काम किया था. लेकिन जो सिला मिलेगा उसके बारे में क्या वह खुद ये जानता रहा होगा कि यही होना है.

मेहरबान तुझपे न अपना है न बेगाना
खुश नहीं कोई भी वह गैर हो या जानाना

नेकियाँ लाख की लोगों से कि कायल हो जाएँ
फिर भी बदनाम हुआ बन गया मैं अफ़साना.

अफ़साना होना बुरा है क्या? हकीक़त होना अच्छा है क्या? जो बचेगा उसे कौन देखेगा? नेकी या बदी की गूँज से कहाँ कि रोशनियाँ जल उठेंगी या बुझ जायेगी. इसी दुनिया की मिटटी में कहीं गुम हुआ आदमी किस तरह इस असर से दो चार होगा कि उसकी बदी सताने लगी हैं या उसकी नेकी के कारण आलीशान झंडे फहराते हुए उसे ठंडी दिलकश हवा दे रहे हैं?

ख़यालों के सिलसिले से एक तवील सन्नाटा जागता है. फ़ानी यानी क्षणभंगुर जीवन को लेकर इतनी चिंताएं क्योंकर? इस सन्नाटे के भीतर की गूँज में बदहवास खयाली दौड़ का हासिल क्या है. ज़रा सी हरकत से सिलसिला टूट जाता है तो याद आता है सितम्बर का मुबारक महीना जा रहा है. धूप की चौंध पसरी है. झुग्गियों की जगह पत्थरों से बने दड़बों पर कहीं कहीं बादल की छाँव का कोई टुकड़ा गुजरता है. जैसे दिन में देखा जा रहा स्वप्न.

उजबेक लेखक पिरिमुकुल कादिरोव का उपन्यास बाबर चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध बाद से पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वाह्न से पहले के काल के मावराऊन्नर और हिन्दोस्तान के शासक रहे ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर के प्रभावशाली व्यक्तित्व की कथा है. ये उपन्यास उस काल की तमाम सामाजिक और भौगोलिक विशेषताओं को उकेरता है. समरकंद और फरगाना के इतिहास की टोह लेता है. अतीत का दरवाज़ा खोलकर पाठक जब उस काल में प्रवेश करता तो एक जाने पहचाने किन्तु बहुत सदियों पहले बीते हुए समय को जीने लगता है. मैंने कई शामें समरकंद में बितायी. मैंने साजिशों, हिम्मतों और हासिल को देखा. किस तरह मनुष्य का इतिहास एक ही कहानी को अलग ढंग से कहता है इसे सिर्फ ऐसे ऐतिहासिक उपन्यास पढकर सहजता से समझा जा सकता है.

बाबर की कथा में एक शायर दिल आदमी है. उसका शायर दिल होना शायरी के प्रेम में होना है. वह किसी तड़प और बेचैनी को अपने आस पास से चुनता हुआ, कहता है. उसकी शायरी के पेच और गिरहें भले ही ला मुकाबिल न हों मगर वे अपने आप में मुकम्मल हैं.

ज़िंदगी अक्सर एक नयी शुरुआत है, उस वक्त जब हम कुछ नया सीखते हैं.

मुझे महसूस हो रहा है कि जल्द ही मेरी आँखें मुंदने वाली हैं. तब मेरी मय्यत को काबुल ले जाकर वहां दफ़ना दीजियेगा. लेकिन अपनी ज़िंदगी के बचे-खुचे दिन मैं आगरा में गुज़ारूंगा... ज्यादा अरसे नहीं जीऊंगा. दिल बहुत कुछ लिखने को करता है. हुकूमत के कामों में मसरूफ आदमी को यकीनन इसके लिए फुरसत नहीं मिलती.लेकिन अब लिखूंगा... मुझे न ताज ओ तख़्त ज़रूरत है और न ही महलों की. मेरे लिए खिलवतगाह ही काफी है. यहीं इसी बाग में. मैं बिना नौकर चाकर और दरबारियों के काम चला लूँगा, अकेला ताहिर आफ़ताबी काफी है. मेहरबानी करके हुमायूँ को मेरे फैसले के बारे में साफ़गोई से लिख दीजिए.

माहिम बेगम कहती है ये सब मुझसे उस बेटे को न लिखा जायेगा जो अपने बाप की खूब इज्ज़त करता हो. बाबर ये कहते हुए वहां से बाहर की ओर चल देते हैं कि अगर तुम न लिखोगी तो ये मैं खुद लिखूंगा. बाबर की बेटी उनको देखकर जान लेती है कि अब्बा किसी परेशान हाल में हैं. बाबर उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर हाथ हिलाते हुए आगे निकल जाते हैं.

क्या मुझे भी इसी तरह आगे बढ़ जाना चाहिए. क्या लिखना ही वह ठिकाना है जहाँ एक सुलतान ने आखिरी सहारा पाया. क्या लिखने से दर्द मिट जाता है. जो भी है जैसा भी है, एक गरीब और बे सल्तनत के सुलतान के लिए कम नहीं है.

न मिला जाँ के सिवा यार ए वफ़ादार मुझे
न मिला दिल के सिवा महरम ए असरार* मुझे.

असरार* माने राज़दार

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