मौसम की तपिश बनी है इसलिए कि फिर से याद किया जा सके उन गहरे पेड़ों को जिनकी छांव में बीती थी बचपन की अनेक दोपहरें और याद कर सकें इमली के कच्चे पत्ते खाने के दिनों को। आज किसी ने अपनी आवाज़ को बना कर नाज़ुक पंख कान में गुदगुदी की है। धूप फिर सख्त है दिन फिर लंबा है। मैं सब चीजों को अपने दिल में उनके वुजूद के साथ रखता हूँ। एक दिशासूचक यंत्र बता रहा है कि तुम कहाँ हो इस वक़्त... मैं सोच कर घिर जाता हूँ हैरत से कि कैसे कोई हो सकता है, दो जगहों पर एक साथ। कि इस वक़्त उस अजनबी शहर के अलावा तुम मेरे दिल में भी हो... ख़ुदा ने एक पर्ची में लिखा उल्लास की स्याही से कि इस सप्ताहांत की सबसे बड़ी खुशी मैं रखता हूँ, अपने प्यारे बच्चे की जेब में कुदरत के सारे डिस्काउंट्स के साथ। और एक आवाज़ आई, मैं तुम्हारी ही हूँ। * * * आंख में उतरता है शाम का आखिरी लम्हा तुम्हारे कुर्ते की किनारी पर रखे हाथ। अगले ही पल सड़क के बीच डिवाइडर पर तेरे कंधों के पीछे खो जाता है, खुशी का आखिरी दिन क्षितिज के उस पार। गुलाबी हथेलियों पर रखते हुये एक वादा हम उठ जाते हैं ज़िंदगी भर के लिए। मेर...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]