ये बात कितनी ठीक है, कहना मुश्किल है मगर मेरा दिल कहता है कि अतुकांत, असम्बद्ध, गूढ़ छद्म प्रयोजन, अस्पष्ट, अतार्किक, अनियोजित और ऐसे अनेक विशेषणों वाली आधुनिक कविता को पढ़ना हिम्मत का काम है। मैंने नौवें दशक से नई कविता की किताबें पढ़ना छोड़ दिया था। इसलिए कि मुझ अल्पबुद्धि को ये कभी समझ न आ सका कि इस कविता का प्रयोजन क्या है? अगर कोई प्रयोजन बूझ भी लिया जाए तो ये नहीं समझ पाता था कि इसमें रस किधर है। कुछ लोग इसे अनर्गल प्रलाप कहने लगे किन्तु मैंने कहा कि कवि की अनुभूतियों को अगर आप नहीं पकड़ पा रहे हैं तो आप एक अच्छे दयालु हृदय के पाठक नहीं हैं। दो दशक बीत गए। कविता नारे लगाती हुई बढ़ती ही गयी। बेशुमार कवि और बेशुमार नारे। इतने नारे अगर सड़क पर उतर कर लगाए होते तो शायद पुनर्जागरण हो जाता।
मैं सड़कों पर नारे लगाता फिरता रहा हूँ। मेरे नौजवान दिनों की यही एक याद बाकी है। इसी एक याद में कई उम्मीदें भी बची हुई हैं। कविता इन्हीं नारों की शक्ल में मेरा पीछा करती रही और मैं इससे डर कर कहीं एकांत में बैठा सिगरेट फूंकता रहा। मेरा एक दोस्त मुझे कविता सुनाता था। उसे सुनते हुये फिर से कविता से प्रेम हो जाता था। उसकी कविता में मिट्टी, प्रेम और ईमान की महक आती थी। इसका कारण था कि वह समकालीन कवियों और खासकर विश्व कविता का गहन अध्ययन भी करता था। उसने मुझे साल नब्बे में महमूद दरवेश की कवितायें सुनाई। मुझे लगता था कि ये बहुत सुंदर गध्य है किन्तु इसका रस और शिल्प इसे कविता का सुंदर रूप देता है। कविताओं में कहानियाँ भी छिपी होती थी। इस तरह कुछ चीज़ें मुझे पूरी तरह भाग जाने से रोक लेती थी। आज की आधुनिक कविता के बड़े हस्ताक्षरों को मैंने पढ़ा नहीं है। इसलिए उनके बारे में कुछ मालूम भी नहीं है। कुछ पहाड़ के कुछ पहाड़ से उतर कर महानगरों में बसे हुये और कुछ दक्षिण के कवि बड़े कवि कहलाते हैं।
सोशल साइट्स पर होता हूँ तब ऐसा लगता है जैसे किसी सफ़र पर निकल आया हूँ। नए नए से लोग और नए दृश्य। जी चाहे तो रुक जाता हूँ और देखने लगता हूँ। ऐसे ही कई बार कुछ कविताओं और ग़ज़लों से सामना हुआ। ये कितनी अच्छी सुविधा है कि आप कहीं जाते भी नहीं और मंज़र ख़ुद आपके सामने से किसी कारवां की तरह गुज़रता जाता है। पसंद आया तो चुरा लीजिये, न आया तो उसे आगे बढ़ जाने दीजिये। कमोबेश यहाँ भी कविता का हाल वही है जो किताबों और रिसालों देखा करता था। लेकिन इस सब में भी कुछ एक नायाब चीज़ें यहीं पढ़ने को मिली और मैं इनका ग्राहक हो गया। कविता के सामाजिक सरोकार पर मैंने कुछ लेख लिखे थे। इसलिए कि मुझे कविता लिखना, कहना नहीं आता तो ये बताता चलूँ कि मैं क्या पढ़ना चाहता हूँ।
वस्तुतः कविता एक वैश्विक आयोजन है इसलिए आप इसके बारे में चुप रह कर जितना आनंद ले सकते हैं उतना बोलकर कभी नहीं। इसलिए मैंने कविता को अपने पास बैठने को जगह दी। उससे खूब प्यार किया। कविता करने वालों से प्यार किया। कभी जी चाहा तो बेवजह की बातें ख़ुद भी लिख दी।
वस्तुतः कविता एक वैश्विक आयोजन है इसलिए आप इसके बारे में चुप रह कर जितना आनंद ले सकते हैं उतना बोलकर कभी नहीं। इसलिए मैंने कविता को अपने पास बैठने को जगह दी। उससे खूब प्यार किया। कविता करने वालों से प्यार किया। कभी जी चाहा तो बेवजह की बातें ख़ुद भी लिख दी।
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बोएज़ डोंट क्राइ कहते उसनेगुलाबी रुमाल से पोंछ ली आँखें।
मैंने छान मारेमारीजुआना, पोस्त, अफीमऔर सस्ती शराब के सारे अड्डे।उम्र न उससे रुकी न मुझसे।मुझे दस दिन दे दोमैं उसके साथ थैला पकड़ करसब्जी मंडी जाना चाहता हूँ।