Skip to main content

कोई ऐसी जगह मालूम है?

एक बार उसने सुरिन से कहा था- “हम कॉफ़ी पीने के लिए आते हैं या कोई और वजह है?” सवाल सुनकर सुरिन के बंद होठों पर हंसी ठहर गयी थी. सुरिन ने कहा- “पगले ये उबला हुआ पानी पीने कौन आता है? ये कॉफ़ी तो बहाना है. असल में तुम्हारे साथ बैठने में मजा आता है. मैं बहुत सी बातें भूल जाती हूँ. जब तक हम साथ होते हैं मन जाने क्यों सब सवालों को एक तरफ रख देता है.” 

ये सुनकर जतिन ने पीठ से कुर्सी की टेक ले ली थी. उसे ऐसे देखकर सुरिन मुस्कुराई थी. जतिन ने पूछा- “अब किस बात की मुस्कान है?” सुरिन ने टेबल पर रखे सेल फोन को गोल घुमाते हुए कहा- “कभी बताउंगी तुमको” जतिन टेक छोड़कर सीधा हो गया- “अभी बताओ” सुरिन फिर से मुस्कुराई. जतिन ने फिर से कहा- “प्लीज अभी बताओ” सुरिन ने उसे कुछ न बताया- “तुम अभी ये समझने के लायक ही नहीं हो” 

जतिन ने उसकी अँगुलियों के बीच गोल घूम रहे फोन को उठा लिया. “अब ये नहीं मिलेगा. जब तक नहीं बताओगी, मैं दूंगा ही नहीं.” 

“है क्या तुमको... गधे कहीं के” सुरिन ने लगभग झल्लाते हुए उसके पास से फोन छीन लेना चाहा. जतिन ने कुछ देर हाथ पीछे किये रखे मगर उसे लगा कि सुरिन लगभग रोने जैसी होने वाली है. “ये क्या? तुम मजाक करो तो कुछ नहीं. मैं करूँ तो पल में रुआंसा.” 

सुरिन चुप बैठी रही. वह कुछ न बोली. जतिन ने फिर से कहा- “अरे ऐसे ही लिया था, सचमुच का ले थोड़े ही जाता.”

जतिन ने कई बार कहा और फिर वह चुप हो गया. सुरिन उदास बैठी रही. उसने सामने रखे फोन को नहीं छुआ. 

भरी गरमी के मौसम में बाहर सडक पर कोई छाँव का टुकड़ा आया. कोई राह भूला हुआ बादल हवा की मद्धम लय के इस तरह बह रहा था जैसे रुका हुआ हो. वे दोनों बाहर उसी छाँव को देख रहे थे. छाँव धीरे-धीरे उनसे दूर जा रही थी. 

“चलते हैं” ऐसा कहते हुए सुरिन ने अपने थैले में पानी की बोतल रखी. फोन को अगली जेब में रखा. छोटा वाला पर्स बाहर निकाल कर हाथ में ले लिए. सुरिन बिना इंतजार किये रवाना हो गयी. जतिन उसके पीछे था. वे बाहर जाने के पतले से, नीम अँधेरे वाले रास्ते में फोम पर बिछे हुए कारपेट पर चल रहे थे. ऐसा लगता था जैसे कोई रुई के फाहों से बना रास्ता है. छोटे दरवाज़े तक आते ही सुरिन रुकी. उसने पीछे देखा. जतिन उसके पास ही खड़ा था. वह जतिन को देखने लगी और जतिन चुप खड़ा रहा. कुछ पल देखने के बाद सुरिन मुड़ी और चल पड़ी. 

वे सड़क तक आये. जतिन ने कुछ न बोला. सुरिन ने एक ऑटो वाले को रुकवाया. उसने पूछा कहाँ जाना है. सुरिन ने जतिन को कहा- “अब बताओ इसको कहाँ जाना है?” जतिन ने कहा- “मुझे क्या मालूम. बिना बताये तुम उठकर आई हो.” 

“कोई ऐसी जगह मालूम है जहाँ अच्छी कॉफ़ी मिलती हो?” 

“हाँ” 

वे दोनों ऑटो में बैठे हुए थे. सुरिन ने कहा- “एक बार मम्मा ने पापा से कहा कि आज शाम को बाहर चलते हैं. पापा ने बिना किसी भाव के कहा- हाँ चलो. हम तीनों बाहर गए. अजीब सा हाल था. न मम्मा ने पापा से कुछ कहा, न उन्होंने कुछ पूछा. हम जहाँ गए थे, वहां बड़ा सुन्दर माहौल था. बहुत से लोग थे. आपस में हंसते हुए, एक दूजे से सटकर खड़े कुछ खाते पीते हुए. हमने भी वहीँ कुछ खाया. मम्मा जो खुद अपने मन से बाहर जाना चाहती थी, वह खुश नहीं दिखी. मुझे इतना दुःख हुआ कि मैं सोचती रही कि काश मैं साथ न आती. पापा नार्मल थे. हम लोग घर लौट आये. मैं अपने कमरे में चली गयी. मैं बहुत देर तक सोचती रही. काश पापा ने थोड़ा गर्मजोशी से कहा होता- हाँ बाहर चलते हैं.” 

[ठंडी हवा जब लोहे को छूकर गुजरती है तब वह भी शीतल हो जाता है. आदमी मगर ये बात नहीं समझता.]

सुरिन तुम्हें याद है? वहां एक नन्हा गुलमोहर था – तीन 

Image courtesy : apkconcepts

Popular posts from this blog

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउ

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्यों की थी।  उनकी कथाओं के

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न