उस दिन जब वे दोनों एक नयी जगह पर बैठे हुए दूसरी बार कॉफ़ी पी रहे थे तभी सुरिन ने पूछा- “मैं जब भी बुलाऊं तब क्या तुम हर बार इस तरह कॉफ़ी पीने आ सकोगे?”
जतिन ने कहा- “हाँ अगर मैं कहीं नौकर न हो गया तो...”
“तो क्या अब जिस तरह हम मिलते हैं वैसे हमेशा मिलना नहीं होगा?”
“नहीं होगा”
“क्यों नहीं होगा?”
“इसलिए कि हमारे पास हमेशा मिलने की इच्छा से भरा ये आज का मन नहीं बचेगा”
सुरिन को उस दिन इस बात पर यकीन नहीं हुआ था. मगर आज वह सचमुच तीन साल बाद जतिन के साथ बैठकर कॉफ़ी पी रही थी. कैसे न? सबकुछ बदल जाता है. इस पल लगता है कि जीवन स्थिरता से भरा है. मन जो चाहता है वही हो रहा है. हम कल फिर से इसी तरह मिलने की अकाट्य आशा कर सकते हैं. और अचानक....
जतिन कुछ खाने को लेकर आया. इस बार वह चुनने को नहीं कह सकता था. उसने कहा- “फिर आगे क्या हुआ?”
“हम मिले थे. कई-कई बार मिले. शादी का दिन बहुत दूर था. वह फोन करता था. आ जाओ कहीं घूमने चलते हैं. मैं जाने क्यों डरती ही न थी. किस तरह ये विश्वास मेरे भीतर आया कि वह मुझे ऐसी किसी जगह न ले जायेगा जहाँ कुछ गलत हो. वह सचमुच कभी न ले गया. बस वह अपने स्कूटर पर अगली सीट पर होता और मैं पीछे. हम शहर भर का लम्बा चक्कर लगाते हुए बातें करते थे. वह बीच-बीच में पूछता था. कुल्फी वाला आ रहा है. चाट वाला आया. चाय की दूकान है. मैं कहती- मुझे कुछ नहीं खाना. फिर भी वह कहीं न कहीं रुकता और कुछ खिला देता था. बस फिर घर पर ड्राप करता और कहता फिर मिलते हैं” सुरिन के चेहरे पर शांति थी.
“प्यार नहीं करता था?”
“करता था.”
“अच्छा... कैसे?”
[जीवन किसी ख़राब साधू का दिया हुआ शाप है जो कभी फलता नहीं मगर हमेशा डराता रहता है]
सुरिन तुम्हें याद है? वहां एक नन्हा गुमोहर था- चार
Image courtesy : Jyoti Singh
“अच्छा... कैसे?”
“एक बार मैंने अपना पर्स स्कूटर की डिक्की में रख दिया था. फिर उसे लेना भूल गयी. कई बार सोचा मम्मा के फोन से उसके फोन पर फोन करूँ और कहूँ कि मेरा फोन रहा गया है. मैं नहीं कर सकी. लेकिन रात नौ बजे डोरबेल बजी. वह खड़ा था. मालूम है क्या बोला?”
“क्या?”
“तेरे से तो ये फोन ही अच्छा है, जो मेरे पास रहना चाहता है.”
जतिन ने देखा कि सुरिन के होठों के पास ज़रा सा केचअप लगा रह गया है. उसने सोचा कि क्या वह अपनी अंगुली से इसे मिटा दे. उसे सचमुच समझ न आया कि क्या करे. उसने कहा- “ऐसे अच्छे आदमी से मैं कभी मिलूँगा”
“अच्छे आदमियों से कभी न मिलना, वहां बहुत ऊब होती है”
बहुत देर से मैच देख रहे सर्विस बॉय के मुंह से निकला- “यस, यस... यस” टीवी के स्क्रीन पर स्लो मोशन में एक गेंद विकेट को छूकर जा रही थी और गिल्ली हवा में कलाबाजी खाती हुई आहिस्ता से ज़मीन की ओर जा रही थी.
सुरिन तुम्हें याद है? वहां एक नन्हा गुमोहर था- चार
Image courtesy : Jyoti Singh