Skip to main content

मौसमों के बीच फासले थे - पांच

आदमी ने कहा- “छत पर कोई कोना है जहाँ तुम सच बोलती हो” औरत चुपचाप आदमी की तरफ देखती रही. आदमी ने अगला सवाल किया.- “क्या तुम उसी जगह बैठी हो” 

आसमान पर छाये हुए बादल छितराने लगे. हलकी सी धूप आई. जितनी धूप आई, उससे ज्यादा हवा चली. झूले पर बैठी औरत ने अपने हाथ बाँध लिए. उसके चेहरे की शान्ति में थोड़ी सी उदासी घुलने लगी. गमलों से उठती गंध, छत की मुंडेर से टकराती हवा, पड़ोस के छत पर टहलते अजनबी जोड़े, गली से गुजरने वालों की आवाज़ों के वृन्द में चुप्पी साफ़ सुनी जा सकती थी. 

“हम कभी सच नहीं बोलते” औरत की आवाज़ में भारीपन था. “हमारी आत्मा सच बोलती है, दिल उसे बरगलाता है और दिमाग आखिरकार मूर्ख निकलता है.” 

“सुनो, मैं तुम्हें अपने बारे में बताती हूँ.” औरत झूले पर ठीक से बैठी. आदमी उसकी ओर देखता रहा. 

“मेरा एक सपना था कि अपना घर होगा. बहुत छोटा सा घर. उस घर में मैं रहूंगी. उसमें एक कोना रसोई बनाने को होगा, एक पढने को और एक आराम करने को. इन तीन कोनों के सिवा मुझे चौथा कोना जो चाहिए था, वह पूरी तरह खाली चाहिए था. खाली कोने मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. मुझे लगता था कि जब मैं अपने घर के उस खाली कोने को देखूंगी तब मुझे लगेगा कि ये घर नया है. इसमें अभी बहुत कुछ आना शेष है. इस तरह आने की आशा का होना बहुत अच्छा होता है. मुझे ये आशा भरी प्रतीक्षा बहुत प्रिय थी. मैं यही करना चाहती थी.”

आदमी ने कहा- “आशा कैसी और प्रतीक्षा किसकी?” 

“मुझे नहीं मालूम कि आशा क्या थी. शायद बचपन से ही लगता था कि ऐसा घर हो जहाँ मुझे कोई कुछ न कहे. मैं अपनी पसंद की सुविधा में जी सकूँ. मैं इस तरह नहीं जीना चाहती कि बाहर की दुनिया की होड़ में, अपने भीतर भी होड़ को बसा लो. वो दुनिया भाग रही है तो हम भी घर में भागें. ज्यादा पढ़ें, जल्दी पढ़ें, जल्दी काम पूरे करें, जल्दी नौकरी पर जाएँ. बाहर से देखकर आयें कि दुनिया कहाँ तक पहुंची है. फिर लौटकर जल्दी खाना बनायें, जल्दी सो जाएँ ताकि कल जल्दी फिर वही सबकुछ कर सकें. मेरी आशा थी कि अपने घर में सुख भरे कदम बढ़ें. आहिस्ता से कुछ अच्छा बनाऊं. कुछ अच्छा पढूं. कुछ अच्छा सुनूँ. कुछ अच्छा सा आराम करूँ.”

आदमी सुन रहा था. गहरे मन से सुन रहा था. उसे लगा कि बातें गहराती जा रही हैं. औरत के चेहरे पर उदास स्याही उतरने लगी है. आदमी ने इसीबढती स्याही को रोक लेने के लिए कहा- “अच्छा सा आराम क्या होता है? क्या कोई खराब आराम भी होता?”

“हाँ ख़राब आराम भी होता है. आप बिस्तर पर पड़े हों और जीवन जीने का मन न हो. इस तरह के पड़े रहने को दुनिया आराम करना कहती है. ये एक खराब आराम है. अच्छा आराम वो होता है जहाँ आप बिस्तर या आँगन पर लेट कर दीवार और छत को कहते हैं, आओ मुझसे बातें करों. मुझे अपनी बाँहों में भर लो. जब मैं सो जाऊं तब तुम मेरा ख़याल रखना. दीवार तुम अपनी घड़ी को मेरे लिए उस वक़्त जोर से बजाना जब मैं आराम कर चुकी होऊं.” 

अल्पांश चुप्पी के बाद औरत ने कहा- “तुम्हें पता है प्रतीक्षा भी अच्छी और बुरी होती है.”

आदमी ने कहा- “मैं समझता हूँ” उस आदमी की आँखों में पीला डूबा हुआ सा उजास था. “मैंने चाहा मुझे कोई मिलेगी. उसके साथ मेरा घर होगा. मैं जहाँ रहूँगा, वह साथ होगी. वह जहाँ होगी मैं साथ रहूँगा. फिर हम जब मिले तो ऐसे ही थे. उसके पास मेरे लिए इतना सारा वक़्त था कि उसकी हर अंगड़ाई में, उसकी हर निगाह में प्रेम देखा जा सकता था.  लेकिन इसके बाद उसने खाली समय को अकेलेपन का नाम दिया. और अपने अकेलेपन में चाहा कि किसी से बात करे. उसने बातें करनी शुरू की. कुछ लोग जीवन का हिस्सा होते गए. उसने ख़ुद उन लोगों को चुना. उसका कहना था कि वह सिर्फ इसलिए बात करती है कि बंद होकर बैठना जीवन को समाप्त कर देना भर होगा. फिर इसके बाद से अब वह यही सब करती है.” 

उस आदमी की आँखों में उदासी थी, आंसू नहीं थे- “मैं प्रतीक्षा करता हूँ कि वह एक दिन मेरे साथ, मेरे लिए रहे” 

औरत ने कहा- “ये अच्छी वाली प्रतीक्षा है न?

आदमी ने कहा- “नहीं”

औरत उसकी तरफ देखते हुए अचानक नीचे देखने लगी. 

छितराए हुए बादल फिर से सघन होने लगे. रौशनी कम होती गयी. भरी दोपहर शाम का घना धुंधलका छा गया. वे दोनों वहीँ थे. झूले में कोई मचल नहीं थी. चाय खत्म हो चुकी थी. ज़िन्दगी बाक़ी थी. 

[वह जो जा चुका हो और साथ रहता हो. उसकी प्रतीक्षा सबसे कड़ी प्रतीक्षा है]

Image : Pinterest 

Popular posts from this blog

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउ

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्यों की थी।  उनकी कथाओं के

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न