तुम अभी थोड़ी देर पहले यहीं थे



हरे, पथरीले पहाड़ी या मैदानी रास्तों पर चलते हुए मैं उन रास्तों को पहचान लेता हूँ, जहां से तुम गुज़रे थे।

पदचिन्ह ही अकेली चीज़ नहीं होती जिससे किसी के गुज़रने का पता मिलता हो। ख़ुशबू को भी हवा अक्सर उड़ा ले जाती है। पेड़ों के तनों पर खुरचे गए नाम और निशान भी बेढ़ब हो जाते हैं। इन सब के बिना, बिना कुछ देखे मुझे अचानक लगता है कि तुम यहां से गुज़रे थे। तुम पूछोगे कैसे तो मैं उलझन में घिर जाऊंगा कि क्या कहूँ कैसे मालूम होता है? मगर होता है।

कभी ये भी लगता है कि तुम अभी थोड़ी देर पहले यहीं थे। मैं ठहरकर तुम्हारे होने को महसूस करने लगता हूँ।