वो भी जाने कहाँ?

पहले दिल इज़राइल था। गलती तो गलती, न की हुई गलती को भी माफ नहीं करता था। फिर थोड़ा यूरोप हुआ, थोड़ा जर्मनी। अपने घावों को देखता और दूजों के दुख समझ कर दिल में जगह देने लगा। इसके बाद दिल इंडिया हो गया। जो आ गया उसी को अपना लिया। अपने आप को पुराने और असली नागरिक कहने वाले हड़तालें करने लगे मगर राम राज्य आए बिना दिल का राम राज्य चलता रहा। कुछ मालूम न था कि दिल में कौन रहता है। दिल ने अपने संविधान में लिखा "सब आधार निरधार है, चार दिन की जिंदगी है सबकी कटने दो"

एक रोज़ बहुत दूर आकाशगंगा के पार व्योम मंडलों के बेड़े से कोई आया उसने कहा "दूरियाँ भूगोल की बात है। दिल की बात नहीं है" दिल रेगिस्तान ने कहा "तुम सर्द मौसम में आते तो भूल जाते कि कहाँ आए हो। मैं तुमको यहीं बाहों में छुपाकर रख लेता। उसने पूछा- "क्या सर्द मौसम में आना पक्का कर लूँ?" दिल होठों में बुझा सिगार दबाये क्यूबा के एक नौजवान डॉक्टर की मोटरसाइकिल पर सवार हो गया। जैसे वह उसे लेने जाता हो। इस वक़्त मैं कहा हूँ और वो भी जाने कहाँ? कुछ मालूम नहीं। वो जिसने कहा था आपके लिए लिखने को दिल हो आया है।


अब दिल छोटे देशों और दुनियाओं से बड़ी चीज़ है।


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