माँ का अचानक ध्यान गया। "भा भा। कित्ता फूटरा है। ओंरे मो तो बायरो आण री जिग्या ई है।" माँ मिट्टी से बने चिड़ियाघर देख रही थी। जब लोहे का जाल बनवाया तब यही सोचा था कि इस पर फूलों और छाया वाली लताएँ पसर जाएंगी। उनकी छांव में परिंदे बैठ सकेंगे। हम उनके लिए घोंसले बनाने की जगह भी बना देंगे।
मैंने प्लाई के टुकड़ों से चिड़ियाघर बनाने का सोचा था। एक दोपहर ख़याल आया कि मिट्टी के चिड़ियाघर अच्छे रहेंगे। सड़क किनारे बैठे कुम्भकार को कुछ आमदनी होगी। जिसने मिट्टी सानी, गूंथी और चाक पर चिड़ियाघर बनाया, उस तक भी एक दो रुपया पहुंचेगा। सम्भव है कि वह सोच ले कि कुम्भकारी का हुनर बचाये रखा जाए। इसलिए मैं मिट्टी के चिड़ियाघर ले आया।
आज इन चिड़ियाघरों में कलरव है।
जिस दिन इन चिड़ियाघरों को टांगा था उस दिन आभा ने मानु को इनकी तस्वीर भेजी तो उसने पूछा- "मम्मा क्या इनमें चिड़ियां घोंसला बनाएंगी?" आभा ने कहा- "ये फ्लैट्स फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व बेसिस पर अलोटेड हैं। रहना है तो आओ, नहीं रहना तो दाना चुगो और मौज करो"
माँ ने इन घोंसलों को गहरे मन से देखा। "तें तो हैंग पुण् लियो रो" मैंने कहा- "माँ पाप-पुण्य इत्तो ही है के कोई कोम कर मन राज़ी होवे तो पुण, पण जे चिंता होवे, डर लागे तो पाप। है जको इत ही है। आगे कण देख्यो। चिड़कलियों हैं रामजी री। बैठी बापड़ी"
जितना बड़ा लोहे का जाल बना है उसके एक कोने का दृश्य है। कुछ महीनों बाद हमारे घर में हम सौ एक सदस्य हो जाएंगे। पांच पांडव तो दुनिया के पांच श्रेष्ठ हुनर लेकर आये थे। हम तो कौरव हैं। साधारण इच्छाओं से भरे। मामूली काम करते। अपने बच्चों के लिए जीते हुए। उनकी ही चिंता करते हुए। इसके बीच महाज्ञानी होने से अलग कुछ छोटे से काम कर लें कि अपने आस पास चींटी, चिड़िया, चूहे को जीने दें। हमारे लिए इतना काफी है।
किसी और के लिए कुछ कीजिये। आपका मन तो मन चेहरा भी सुंदर दिखने लगेगा।