दो टहनियां हवा के साथ आपस में एक दूजे से लिपटी।
चर्र की हल्की आवाज़ आई। जैसे सावन के मौसम में भीगी चारपाई पर कोई आकर बैठ गया।
जैसे किसी ने आधी रात चुपके से उढके हुए दरवाज़े को खोला।
"क्या सचमुच अब किसी के दबे पांव चलने की आवाज़ आएगी?"
मेरे इतना सोचने भर से अंधेरे में रूमान झरने लगा। सहसा कंधे पर छुअन जगी।
आह! ये पेड़ से झड़ी दो सूखी पत्तियां थीं।
जितना मेरा कासा सूखा था, जितनी मेरे मुंह में प्यास थी, जितना किसी का होना, न होने में बदल गया था।
ठीक वैसा था सूखी पत्तियों का स्पर्श।
डब-डब की चार-छह आवाज़ों से मैंने कासे में गीलापन उड़ेल दिया।
जैसे कोई यायावर अचानक पास आ बैठा है और मैं उसके चोर दांत देख रहा हूँ।
शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो। सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है। व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है। यही शैतान का प्राणतत्व है। जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं। शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...