Skip to main content

हम जिन को खो चुके हैं

जिस बरस वह लड़की मिली थी, मैं उस बरस की तसवीरों तक गया। मुझे देखना था कि मैं उन दिनों कैसा दिखता था। आह ! क्या हाथ लगा पता है? एक बिखरा टूटा हुआ आदमी। एक ठोकर उसके सामने खड़ी थी। वह उदास, शिथिल था। वह न आगे बढ़ पाता था, न ही लौटना उसके बस की बात थी। ऐसे हाल में भला क्या किसी को वे बातें पसंद आई होंगी, जो रिस रहे खून की तरह बहती गाढ़ी स्याही से लिखी थी।

कभी-कभी स्याही से नमी की तरह जीवन से प्रेम उड़ जाता है। गाढ़ा बिछोह शेष रह जाता है। 
* * *

फ्रीज़ेश कारीन्थी की एक कहानी है- एक तरफा प्यार। कहानी का नायक जिससे प्रेम करता है, उसी से विवाहित है। वह उसे प्रेम नहीं कर पाता। उसे लगता है कि हमारे बीच की वासना प्रेम में बाधा है। वह उसके साथ रहते हुये, उससे दूर रहना चाहता है ताकि उसे प्रेम कर सके। इस कहानी को मैंने दो हज़ार दस में पढ़ा था। आठ साल बाद ठीक से याद नहीं है कहानी क्या कहती है। अब उस कहानी को कभी दोबारा पढ़ूँगा तो वह नए अर्थ में समझ आएगी।

जैसे हम जिन को खो चुके हैं, उनसे नए सिरे से मिल सकें तो वे काफी अलग जान पड़ेंगे। हमें लगेगा कि जिन बातों के लिए दुखी रहे, वास्तव में वे ऐसी थी ही नहीं कि कोई दुख हो। हम ख़ुद को नासमझ पाकर मुस्कुरा उठेंगे। हमने ये क्या किया? 
* * *

तस्वीर 25 अप्रेल 2013 की है। दुख के घने पतझड़ का मौसम था। मैं दिमाग को नाकाम करने वाली दवा खाकर कमरे मैं खड़ा हुआ था। सोच रहा था कि बाहर चला जाऊँ शायद आराम आए मगर डरा हुआ कि अभी तो बाहर से आया हूँ। वहाँ आराम नहीं था।

यही कोई दिन का एक बजा था। समय बदलता रहता था लेकिन दिन आगे नहीं बढ़ते थे। वे ठहर गए थे।

दवाएं अच्छी थी। दवाओं को खाने के बाद मुझे लगता था कि सर के भीतर घोड़े की नाल लगा दी गयी है। सर पत्थर जितना सख्त हो गया है। आस-पास से गुज़रते लोगों को देखकर कुछ महसूस नहीं होता। दुनिया बेजान चीज़ों से भर गयी है। मैं हाथ बढ़ाकर कुछ भी छूना नहीं चाहता। धूप में बैठ जाता हूँ तो धूप नहीं लगती। पसीना आता रहता है और हवा उसे सुखाती जाती है।

कभी मुझे अपने आप पर दया आती थी। मैं अपने हाथ को दूजे हाथ से छूता और कहता एक दिन सब नॉर्मल हो जाएगा। सब। 
* * *

पता नहीं कैसे छोटे बच्चे सोच लेते हैं कि कोई उनका प्यार चुरा लेता है। कि अपने आप से ही फुरसत नहीं होती।

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...