"डू यू एवर फील गिल्ट?"
मैंने उसकी ओर देखा। प्रश्न मुझसे टकरा कर बूमरेंग की तरह उसके चेहरे पर ठहरा हुआ था। स्थिर, शांत और प्रतीक्षारत चेहरा उत्तर का आकांक्षी था। प्रश्न दो चेहरों के बीच का सबकुछ बुहार के ले गया था। वहां एक निर्वात उग आया था।
मैंने कहा- "ना"
मेरे उत्तर को शायद उसने सुना नहीं। उसकी आंखें लगातार मेरे चेहरे को देख रही थी। मैंने भी अपलक उसे देखा। उसकी ठहरी आंखें और होंठ एकजुट थे कि कहीं कोई विचलन न था। ऐसा विचलन जिससे समझा जा सके कि प्रश्न उत्तरित मान लिया गया है।
सहसा लगा कि उसके होंठ हिल रहे हैं। उनका हिलना इतना कम था कि अगर मैं पूरी तरह वहीं न होता तो इसे मिस कर देता कि उसने अगला प्रश्न पूछ लिया था।
"कैसे"
मैंने अपने होठों के किनारों को नीचे की ओर खींचा। जैसे मैं अपने उत्तर के बारे में आश्वस्त तो हूँ मगर ये ऐसा क्यों है, नहीं जानता।
"इसलिए कि मुझे ये चाहिए। मैंने इसके होने पर सबसे बुरा परिणाम सोच रखा है।"
अब उसके होंठ कुछ हिलते हुए दिखे। उसने कहा। "आई थिंक इट्स एन इनएस्केपेबल ट्रैप" उसकी आंखें अब भी स्थिर थी। जैसे उसे सबसे अधिक सही उत्तर जान लेना था। जैसे ये जान लेने के बाद सब समस्याएं सुलझ जाएंगी।
"तुम किसी हत्यारे को जानते हो? क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम किसी की हत्या कर सकते हो? क्या तुम भूलवश हुई हत्या के बाद भी टहलते हुए बिना पश्चाताप के घर जा सकते हो?"
मुझे लगा बड़े ज़ोर से सुनने को मिलेगा। "नो" लेकिन उसने कहा। "आई विश..."
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इसके बाद साल भर बाद मैंने उसे देखा। मैं उससे पूछ सकता था कि डू यू फील गिल्ट? लेकिन मैंने उसे कहा- "बधाई।"
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एक वीराना उग आया। मुझे याद न था कि मैं कहाँ हूँ और क्या कर रहा हूँ। दो तीन साल बाद वीराना आहिस्ता से कम होने लगा होगा। उन बरसों में बेतरतीब जंगली फूल खिलने लगे होंगे। मैं जब तक लौटकर ख़ुद तक आया, वहां बेहिसाब फूल थे। सबसे अधिक नीले रंग के फूल थे।
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