शहरों को मल्टी नेशनल कम्पनियों के होर्डिंग और स्टोर्स व रेस्तराओं की चैन ने एक सा लुक दे दिया है। संकरी गलियों में भी एक से डिस्प्ले लगे हुए। अगर किसी की आवाज़ न सुनाई दे तो लगता ही नहीं कि किस महानगर में खड़े हैं।
इन एमएनसी का नाश हो।
हम शहरों को उनकी अपनी लिखावट, दीवारों, मेहराबों और कंगूरों से पहचान सकें। हम चमचमाती रोशनी से परे चेहरों के दुख सुख पढ़ सकें। हम हर जगह पूछ सकें कि ये रास्ता कहाँ जाता है। बताने वाला भी सोचे कि परदेसी है इसे बताने की ज़रूरत है।
जिस कलकत्ते पर चम्पा बजर गिरने सा क्रोध करती थी। उसी कलकत्ते से प्यारे बांग्ला लोगों का प्रेम लेकर लौट आये हैं। कल कलकत्ते की दोपहर गरम थी। आज सुबह का रेगिस्तान बहुत ठंडा मिला।
तस्वीर परसों शाम की है। पिता पुत्री बंगाली शादी के रिच्युअल्स देखते हुए।