ज़िन्दगी असल में भूल भुलैया है।

रात उसने कहा- "के, यू नेवर मिस मी" एक हल्का सा पॉज आया। इस पॉज में उसने शायद हल्की आह भरी। मैंने कहा- "इतने समय बाद बात करो और वो भी दोष लगाने के लिए" उसने कहा- "दोष नहीं है। पर ऐसा ही है। मैं जब तक आगे होकर बात न करूँ, आपकी ओर से कोई कॉल, कोई मैसेज नहीं आता"

रात का मौसम बहुत अच्छा था। हल्की ठंड थी। चांद गायब था। पुल पर आधी चूड़ी की तरह सिलसिले में लैम्पपोस्ट चमक रहे थे। छत पर बिछी दरी पर लेटे हुए मैंने देखा कि साफ तारे दिख रहे थे।

"अच्छा एक बात बताओ" 
"क्या"
"कुछ नहीं जाने दो"
"अब पूछ लो"
"कभी-कभी हम दुनिया की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। जब थकते हैं तब याद करते हैं कि वो कौन था? जिससे बातें करते हुए सुख था। जिसके साथ चाय-कहवा पीते, जिसके साथ आंखों ही आंखों में शरारते करते हुए एक हंसी खिलती थी।" 
"हाँ"
"ये वो लम्हा है। इसलिए मुझे फोन किया"
"सच कहते हो। लेकिन मैंने हमेशा याद किया"

बहुत बरस पीछे। बेहिसाब खोये रहने के दिनों की किसी शाम का कोई टुकड़ा याद आया। याद आया कि हम कितना सोचते हैं कि जाकर उसके पहलू में बैठ जाएं। लेकिन बाद में पाते हैं कि ज़िन्दगी असल में भूल भुलैया है। इसे ऊपर से देखें तो सब रास्ते दिखते हैं लेकिन इसमें चलना शुरू करें तो कोई रास्ता नहीं मिलता।

सुबह एक बड़ा परिंदा दिखाई दिया। मेरा दिल धक से रह गया। जैसे हम किसी के सम्मोहन में डरकर जड़ हो जाते हैं। जैसे कोई अपना हाथ हमारी ओर बढ़ाता है और हम कुछ नहीं कर पाते। वह समेटता रहता है और हम भीगे रुई की तरह उसकी हथेली में भर जाते हैं।

अब बहुत सारी चिड़ियाँ घर में रहने लगी हैं। मुझे उनकी चिंता होने लगी। जाने कौनसी चिड़िया इसके पंजों में फंस जाएगी। जाने किसके दिल पर इसकी तीखी चोंच होगी।

हमारे पास दिल होता है तो शिकारी कत्थई सुरमई पाँखें फैलाये हवा में तैरता आता है। लेकिन दिल तेज़ी से धड़कने लगता है। वह चाहता है कि जो होना है वह हो जाये। इसके उलट सब चिड़ियाँ बेरी के बीच मौन ओढ़कर बैठ गयी। जैसे वहां कोई चिड़िया हो ही नहीं। मैं उनको देखते हुए सोचने लगा कि क्या मैं घर के अंदर चला जाऊं। ताकि एक झपट्टा न देखना पड़े।

फिर मैंने कैमरा उठाया और इस शिकारी की तस्वीरें लेने लगा कि आखिर इस दिल का और चिड़िया का अंजाम तो वही है। 
* * *

मुझे कैमरा का अ आ भी नहीं आता। लेकिन हम खेलने से बाज़ नहीं आते कि वो कैमरा हो या...