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हथकढ़
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]
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September 29, 2013
कमर पर बंधी है कारतूसपेटी
September 27, 2013
रेगिस्तान में रिफायनरी की आधारशिला
September 26, 2013
जो अपना नहीं है उसे भूल जाएँ।
September 23, 2013
रेगिस्तान का आसमान अक्सर
September 17, 2013
सबकी पेशानी पर है प्रेम की थोड़ी सी राख़
September 13, 2013
हसरतों का बाग़
September 04, 2013
शाम के झुटपुटे में
August 30, 2013
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
August 23, 2013
मैं टूटे हुये तीर-कमां देख रहा हूँ।
August 08, 2013
होने को फसल ए गुल भी है, दावत ए ऐश भी है
August 01, 2013
रेगिस्तान के एक कोने के पुस्तकालय में प्रेमचंद
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