एक मरा हुआ आदमी कई बार सचमुच मरा हुआ नहीं होता है।

एक आदमी एक कहानी लिखता है। खिड़की से हवा का झौंका आता है और रुक कर सोचता है अगर मेरे हाथ में कुदरत एक हुनर रख दे कि मैं अतीत के रास्तों को अपनी इच्छा से मोड़ दे सकूँ। तो क्या उन रास्तों को अपने दिल के हिसाब से तरतीब में लाऊँ या फिर कुछ चीज़ें नज़रों से दूर कर दूँ और उनको कभी अपने करीब से न गुज़रने दूँ। 

उसने कुछ रात पहले तय किया कि ऐसी नंगी कहानी, जिसे पढ़ कर पत्नी और बच्चे नए सिरे से रिश्तों को समझने देखने लगें। जिसे पढ़ कर वे कुछ ऐसा पाएँ कि एक पीतल का बरतन था दूर से सोने सा चमकता था। इसके बाद उससे कोई सवाल करें कि तुम ऐसे क्यों थे? जब तक होश है इस कहानी को कहना मुमकिन नहीं है इसलिए वह इस कहानी को लिख कर इन्टरनेट पर प्रकाशित होने के लिए शेड्यूल कर देता है। यानि ये अगले साल छपेगी। वक़्त बीतता जाएगा और वह इसे रिशेड्यूल करता जाएगा। जिस दिन मर गया उसके कुछ महीने बाद कहानी होगी मगर किसी की बात सुनने के लिए वह आदमी न होगा। 

जो आप जी रहे हैं वही सत्य है, जो नहीं जीया वह असत्य। 

मरा हुआ आदमी किसी के सवालों के जवाब नहीं दे सकता है। इसलिए इस कहानी में वास्तविक नाम, जगह, दिन, घटनाओं के गवाह और बीस एक फोन नंबर, जो कहानी से वास्ता रखते हैं, उन सबको पूरा लिखता है। ताकि कोई भी मरे हुये आदमी की कहानी पर झूठ होने का दावा करने से पहले हक़ीक़त को जांच सके। लिखता है कि जो इस कहानी के किरदार हैं, वे जिनके साथ जीते हैं, उनको क्या सोचते हैं। सिवा इसके कि किसी के साथ सोना एकदम दो लोगों के बीच का निजी मामला है। इसमें चरित्र का कोई प्रश्न नहीं है। 

पाँच सितारा होटल में खाना खाकर बिल चुकाने की हैसियत रखने वाले आदमी का चोरी से एक चमच जेब में रख लेना। जानबूझ कर किया हुआ काम है। चोरी है मगर कुछ अच्छे मनोवैज्ञानिक इसे एक मामूली व्याधि बताकर चोरी के आरोप को नकार देंगे। इसलिए भी कहानी लिखने वाला आदमी खुश है कि कहानी की ऐसी घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर दिये जाने की अपेक्षा रखता है। बाकी जिस तरह कहानी लिखने वाला आदमी अपने अतीत को बदल नहीं सकता है वैसे ही बाकी लोग भी उसी तरह बंधे हुये हैं। वे सिर्फ मुंह फेर सकते हैं। 

एक मरा हुआ आदमी कई बार सचमुच मरा हुआ नहीं होता है। 

हवा अब भी काफी तेज है। बादलों की छांव हैं। एक ऐसी छांव जिसका अगले कुछ पलों में टूट जाना तय है। जैसे प्रेम की छतरी हुआ करती है। 
* * *


घर में हुआ कुछ नहीं है।

दीवारें, जिन के ऊपर से
कूद कर भाग जाते थे वे ऊंची हो गयी हैं।

कद बढ़ गया लेकिन नीम के तने के पास
खड्डा हो जाने से
टहनी अब भी उतनी ही ऊंची रह गयी है।

पतले पहियों वाली सायकिल
जेब में रखने वाला रेडियो
बेटरी से चलने वाला वाल्कमेन
फोर्स टेन के सफ़ेद जूते, ओकजमबर्ग की सलेटी जींस
एक माउथ ऑर्गन और कुछ चवन्नी अठन्नियाँ
सब कुछ खो गया है
हालांकि घर में हुआ कुछ नहीं है।

एक लड़की सुबह
सायकिल पर सोजती गेट जाया करती थी
उसके लिए हॉस्टल के कमरे में सुबह जल्दी हो जाती थी।

कहना होता था
इधर कहीं अकेले में मिलो
कि तुमको बाहों में भर कर चूमने का मन है
मगर न देखा न छुआ न चूमा
न मिले कभी और न ही बिछड़े
फिर भी फ़ैज़ दिल में गाते रहते थे, आपकी याद आती रही रात भर।

मौसम आए गए,
बरस दर बरस गिरते गए
अनगिनत सूरतें खो गयी अतीत की गर्द में
और मुसाफिर दिल ने छोड़ दिया दुनिया का कारवां
कि अचानक तुम मिले।

तुम मिले तो सोचा कि कहाँ रखूँ
तुम गए तो सोचा कि कहाँ से खोज लाऊं।

इन शामों में थोड़ी कम कम पीता हूँ
ऐसा करने से दर्द कुछ ज्यादा ज्यादा होता है
मगर मुसलसल गुज़र रही है दुनिया, चल रहा है ज़िंदगी का कारोबार

देख रहा हूँ अपनी दो आँखों से कुछ रीत रहा है
एक उन दिनों से पहले, एक उन दिनों के बाद
और घर में हुआ कुछ नहीं है।
* * *