रेगिस्तान में सूखी सब्ज़ियाँ हर घर में मिल जाती है। हालांकि अब यातायात के साधन बढ़ने से हरी सब्ज़ियाँ आसानी से मिलने लगी है। इन हरी सब्ज़ियों के कारण सूखी सब्ज़ियों के प्रति लगाव कम हुआ है। अब भी काफी घरों में सांगरी, केर, कुम्भटिये, काचर आदि को पानी में उबालकर सुखा लिया जाता है। ये सूखी सब्ज़ियाँ साल भर कभी भी काम ली जाती हैं।
ये हिलारे हैं। इनको कुछ लोग कुम्भटिये कहते हैं। रेगिस्तान में पाए जाने वाले पेड़ कुंभट के बीज हैं। कुंभट के फलियां लगती हैं। उनमें से ये बीज निकलते हैं। राजस्थान की प्रसिद्द पंचकूटा की सब्ज़ी में अगर हिलारिये नहीं है तो सब्ज़ी अधूरी है।
कुंभट एक कम पानी की आवश्यकता वाला पेड़ है। इसे अंग्रेजी में अकेसिया सेनेगल कहा जाता है। कुंभट के पेड़ के तने से गोंद निकलता है। इस गोंद का उत्पादन बढ़ाने के लिए जोधपुर स्थित काजरी में एक इंजेक्शन तैयार किया गया है। इस इंजेक्शन से प्राप्त गोंद की गुणवत्ता भी स्तरीय है। इस इंजेक्शन के पेड़ पर साइड इफेक्ट भी होते हैं, ऐसा कृषकों का कहना है।
दो दिन पहले गोंद बेचने के लिए गांव से एक लड़का आया था।
"भाई के जातियो है?"
"सारण"
"अरे हूँ ही सारण हूँ।"
"हेंन ऐ?"
"आ मेरी बैन है"
"सगा?"
"हाँ"
"भुआ भाव तो तीन सौ रुपिया है थे ढाई सौ ही दइयो"
ढाई सौ रुपये किलो के भाव से मौसी, माँ, चाची और पड़ोसियों ने आठ किलो गोंद खरीदा है। इस गोंद से लड्डू बनेंगे। बाज़ार में इसका भाव चार सौ रुपये के आस पास है। एक पड़ोसी मौसी ने कहा "मैंने तो दो सौ रुपये किलो लिया है।"
"पचा रुपयों रो कै है। हो तो लाई भतीज ई"
ये हिलारिये उबल चुके हैं। अब इनको सुखा दिया गया है। इनका भाव सौ रुपये किलो है। सूखे हुए हिलारिये बाज़ार में डेढ़ सौ से ढाई सौ रुपये किलो बेचे जाते हैं। पंचकूटा की सब्ज़ियाँ औसत ढाई सौ से साढ़े चार सौ रुपये किलो बिकती है।
मौसी की पापड़ी उपड़ गई है। एक हाथ से काम करने पर पीठ की मांसपेशियां अकड़ जाने को पापड़ी उपड़ना कहते हैं। योगागुरु चाची मालिश करके इलाज कर रही है।
चाची ने कहा -"बाबा रामदेव आळी दवाई लगाई है। फट दण सावळ हो जेहो"
बाबा रामदेव की फिटनेस पर सवाल खड़ा कर दिया गया है। "बो बाडियो बाबो साकलो कूदणो सरु होवे तो ही गदे आळी पखाल जितो पेट आउड़ो पड़यो है"
इन हिलारियों से बनेगी पंचकूटा की सब्ज़ी और कभी कढ़ी। आखातीज के आस पास सांगरियां आएंगी। उनको भी ऐसे ही सुखाया जाएगा।