Skip to main content

पीवन को भंग नहावन को गंग

बाड़मेर में भांग, बिजली के आने से बहुत पहले आ गयी थी। मान्यता ये है कि बाड़मेर आने वाले पहले आदियात्री की धोती से चिपक कर आई। मंदिरों और चौपालों के पिछवाड़े उग गयी थी।

ढाणी बाज़ार से रिस कर नीचे उतर रही संकरी पेचदार गलियाँ प्रताप जी की प्रोल पहुँचती हैं। वहाँ पहुँचते ही मोखी नंबर आठ के पास वाले और नरगासर के बकरों की गंध पीछे छूट जाती है। गायों का गोबर गली-गली की धूल से अपवित्र हुई चप्पलों और मोजड़ियों को पवित्र करने के इंतज़ार में मिलता है। यहीं जोशी जी की एक पान की दुकान है।

दिन भर से दुकान पर बैठे जोशी जी को आराम देने के लिए छोटे भाई आ गए।


"हमें जावों" इतना कहकर उन्होने दुकान की पेढ़ी की ओर टांग बढ़ाई। गल्ले के पीछे तक पहुँचने में टांग थोड़ी छोटी पड़ गयी। टांग की क्रिया-गति इतनी धीमे थी कि गिरने की जगह टांग हवा में लटकी रह गयी। उन्होने ध्यान से हवा में स्थिर टांग को देखा। टांग को थोड़ा उठाया, थोड़ा आगे बढ़ाया लेकिन अन्तरिक्ष के निर्वात में स्थिर की भारहीन वस्तु की तरह टांग फिर भी लटकी रही। दायें बाएँ देखे बिना नाप को सही किया और वे तीसरे प्रयास में दुकान में पहुँच गए।

गल्ले के पीछे आए ही थे कि ग्राहक ने कहा पान लगा दो। पाँच एक मिनट के बाद ग्राहक ने कहा- "दे दो" जोशी जी ने पूछा "सूं?"

"पान"

"कत्थो लगावो पड़से, चूनों लगावो पड़से, प्छे देऊं"

हथेली में रखा पान कब का फट चुका था। जोशी जी अपनी हथेली पर ही कत्था लगाए डंडी घुमाए जा रहे थे। बड़े भाई साब देख रहे थे। हथेली पर कत्था रगड़ रही डंडी रुक गयी। उन्होने बड़े भाई साब को पूछा "वैगा आया?"

पाँच मिनट से वहीं खड़े हुये भाई साब ने कहा- "बारे आवो"

छोटे जोशी जी ने पान रखी बाल्टी से पानी लेकर अपना कत्थे वाला हाथ धोया और बाहर गए। बाहर आकर कहा- "जाऊ सूं।"

दस कदम दूर चलते ही एक नाली आ गयी। छोटे जोशी जी ने पाँवों के ब्रेक किए। झुककर नाली के आकार का निगाहों से नाप लिया। वे दो कदम पीछे आए और एक लंबी छलांग लगाकर पानी के ऊपर से कूद गए। छह इंच चौड़ाई वाली नाली पीछे छूट गयी और वे जोशियों के ऊपरले वास की ओर बढ़ गए।
* * *

भांग हमारे जीवन को बढ़ा देती है। एक-एक पल एक-एक घंटे जितना लंबा हो जाता है। विजया नामक इस औषधि से दीर्घायु होना केवल कल्पना मात्र नहीं है। ये अनुभूत सत्य है। भांग क्रिया में स्थिरता लाती है।

आज सुबह ही हेमंत के पान के गल्ले पर खड़े पंडित जी ने कहा- "भाई साब भांग का उल्लेख तो शास्त्रों में भी मिलता है। राम और लक्ष्मण ने भी मिलकर घोटी थी। वही बूटी लेकर हनुमान जी समुद्र लांघ गए थे।

इसके बाद उन्होने ये रचना प्रस्तुत की।

पीवन को भंग नहावन को गंग ओढ़न को दुशाला
हे दीनदयाल दे कोई मृगनयनी या देना मृगछाला।

ओ मेरे दीनदयाल इतनी विनती है कि पीने के लिए भांग देना, नहाने को गंगा का पानी, ओढ़ने को दुशाला देना। एक बड़ी सुंदर आँखों वाली भार्या देना और ये न दे सको तो मृग छाल दे देना ताकि साधू बनकर उसे ओढ़ बिछा सकें। 
* * *

इस गूढ ज्ञान को प्राप्त करके मैंने जिज्ञासा से पूछा- "प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में इसे शामिल किया गया है या नहीं?" पंडित जी ने ठहरी हुई आँखों से मुझे देखा। वे अनर्थ या अवश्यम्भावी में से एक शब्द का उच्चारण करने को ही थे कि चाय आ गयी। 
* * *

Popular posts from this blog

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउ

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्यों की थी।  उनकी कथाओं के

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न