जिस बात पर दुनिया अभी तक अंधेरे में है उस रहस्य को केवल बाड़मेर के चुनिन्दा लोग जानते हैं। ।
#भंगभपंग - दो
बाड़मेर के रेलवे स्टेशन से बाहर आते ही आपको गांधी जी मिलेंगे। वे उसी तरफ जा रहे हैं, जिधर बल्लू भाई की भांग की दुकान है। स्टेशन रोड पर सीधे चलते हुए एक टी पॉइंट आ जाता है। गांधी जी केवल टी पॉइंट साथ चलते हैं। इस जगह से वे दायें मुड़कर बापू कॉलोनी की ओर चले जाते हैं।
टी पॉइंट के बाएँ मोड़ से शहर शुरू होता है। मोड़ पर गांधी चौक स्कूल है। उसके सामने दल्लू जी की कचौड़ी वालों की असली दुकान है। इससे आगे एक सरकारी कार्यालय, उसके सामने अंग्रेजों के ज़माने की स्कूल है। स्कूल से थोड़ा आगे गोपाल सेठ चप्पल वालों की दुकान आती है।
गोपाल सेठ ने आसमानी चप्पल बेचकर बहुत सारा सफ़ेद धन बना लिया था। इस धन के बूते सफाई महकमे की आला कमिटी के सदर बनने के चक्कर पड़ कर मेवाराम से उलझ बैठे थे। जड़ी बूटी रसिकों का मानना है कि मेवारामजी ने ही चप्पल सेठ गोपाल की सराय जैसी होटल के आगे रेलवे पुल का लक्कड़ खड़ा करवाया है।
पुल की लम्बाई मंत्री जी के घर तक खत्म हो रही थी लेकिन मेवारामजी रंढू से खींचकर पुल को स्टेडियम के मोड़ तक ले गए और गोपाल होटल को दबा दिया। इसके बाद अजमेरी अंडे वाला और होटल गोपाल की औकात बराबर हो गयी। इस परिणाम से "करोगे सेवा तो मिलेगा मेवा" कहावत निरर्थक हो गयी, चप्पल सेठ को सेवा नहीं करने पर भी मेवा मिल गया।
चप्पल सेठ की दुकान से बीस एक दुकान आगे गांधी चौक से गढ़ को जाती सड़क पर बल्लू भाई की भांग की लाइसेन्सी खानदानी दुकान आ जाती है। इस दुकान में एक बड़ा और कुछ छोटे सिलबट्टे, कुछ एक डिब्बे, स्वच्छ जल के पात्र, लाल गमछा, मीठा और नमकीन सहित ढेर सारी शांति रखी रहती है।
बल्लु की दुकान के आगे रास्ते मुख्य बाज़ार से होते हुए शहर से बाहर निकलकर गांवों की ओर जाते हैं। कुछ एक रास्ते पहाड़ी की खोह में जाकर खत्म हो जाते हैं। जबकि बल्लू भाई की दुकान पर आप प्रसाद ले लें तो रास्ता सीधा आनंदलोक को जाता है।
इसी जगह से प्रसाद लेकर हनु भाई जोशी नई नौकरी पर गए थे। हनु भाय्या कला में बारहवीं पास थे। स्कूल वाले उनके संभाषण से ऐसे प्रभावित हुये कि पहली घोट्म-घोटाई में ही रिश्ता पक्का कर बैठे। उन्होने पूछा- "क्या पढ़ाओगे?" हनु भाय्या ने गोली ले रखी थी। उन्होने कहा- "ज्ञान तो जित्ता घोटा जाये उतना ही कीमती होता है। मैं तो हर विषय का अध्ययन करता रहता हूँ। मुझे तो आप कहो। मैं तो कुछ भी पढ़ा लूँगा"
उनको साइंस की कक्षा दे दी गयी।
कक्षा में जाते ही हनु भाय्या ने जीव विज्ञान की किताब खोली। उन्होने पूछा- "सबसे होशियार बच्चा कौन है?" पूरी कक्षा ने एक लड़के की तरफ देखा। उस लड़के से नए माड़सा ने पूछा- "पौधे सजीव होते हैं कि निर्जीव" लड़के ने कहा- "सजीव" हनु भाय्या ने उसे इशारा किया और कक्षा के सामने बुला लिया।
"क्या पौधे बोल सकते हैं?
"नहीं"
"क्या पौधे चल सकते हैं?"
"नहीं"
एक चमाट लगा कर होशियार को बैठा दिया।
विद्यालय से लौटने के पश्चात शाम की गोली लेते समय हनु भाय्या ने बताया कि सबसे अच्छे प्राइवेट स्कूलों के भी हाल खराब हैं। सब बच्चे डफोल हैं। अर्धचेतन और लुघुचेतन गोलीदारों ने उनको समझाया। पौधे सजीव होते हैं।
अगले दिन हनु भाय्या तैयार होकर फिर विद्यालय। वही पाठ शुरू। उसी होशियार लड़के को खड़ा किया। पूछा "पौधे सजीव होते हैं या निर्जीव?"
लड़के ने कहा- "निर्जीव"
हनु भाय्या ने एक चमाट लगाई और लड़के को बैठा दिया।
उन्होने कक्षा को समझाया। "पौधे सांस लेते हैं। पौधे भोजन जुटाते हैं। पौधे बढ़ते हैं। इसलिए पौधे सजीव होते हैं।" सर झुकाये बैठे होशियार बच्चे पर चाक का टुकड़ा फेंका। उसने ऊपर देखा तो हनु भाय्या ने कहा- "ज़ोर से बोलो, पौधे क्या होते हैं?"
कक्षा में स्वर गूँजा "सजीईईईव"
इस सजीव और निर्जीव के कारण कोई बात हनु भाय्या के मन को कचोटने लगी। वे एक उलझन में घिर गए। स्कूल से आने के बाद उन्होने चिंताजनक चर्चा की "हम ब्राह्मण होकर कहीं ज़िंदा चीज़ों का भोग तो नहीं लगा रहे? भांग एक पौधा है और पौधे सजीव होते हैं"
सबने एक स्वर में कहा- "सूं ! कालो थियु सै?"
इसके बाद एक चुप्पी पसर गयी। इस चुप्पी में सदर बाज़ार के ऊपर खींची बिजली की तारों पर बैठे रहने वाले कबूतरों ने बीट करना स्थगित कर दिया। मंडली की चुप्पी को भंग करने के लिए डमजी भाय्या ने वैदिक-फतवा जारी किया। "भांग शाकाहारी है।"
सबके चेहरे पर आराम उतरने लगा। डमजी इस क़स्बे के आदिनागरिक गिने जाते रहे हैं। उनका प्रादुर्भाव कब हुआ और वे कहाँ मिलेंगे ये कोई नहीं जान सका। डमजी भाय्या ने आगे सौंदर्यशास्त्र सम्मत वाक्य उदबोधित किया। "भांग मनुष्य के चेहरे का आभूषण है।" अब कहीं जाकर बल्लू की दुकान के पतरे वाले छज्जे पर बैठे कबूतरों ने सांस ली।
डमजी भाय्या ने ठंडी हवा के लिए चेहरे को आसमान की ओर उठाया। तेलियों की गली से घूमकर आया गोबर भरी हवा का ताज़ा झौंका उनको भरपूर छूकर गुज़रा। उनको तरंग आई। "मोनालिसा पेंटिंग माय एवी हहातोड़ी स्यान दिखाए सै गमसे की इए रे भोंग लिधोड़ी सै"
मोनालिसा की रहस्यमय मुस्कान का राज़ है कि उसने भांग ली हुई थी। ऐसी मुस्कान और किसी औषध से नहीं आ सकती।
* * *