देश के कुल बजट में शिक्षा का बजट केवल ढाई प्रतिशत है। वर्ष दो हज़ार अट्ठारह-उन्नीस के लिए शिक्षा को इक्यासी हज़ार करोड़ रुपये मिले हैं। ये ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है। मैं समझता हूँ कि देश चलाने के लिए भिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं लेकिन एक सुशिक्षित समाज का निर्माण ही किसी देश का प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए। एक अफसोस ये भी है कि देश की कुल स्कूली शिक्षा में से तीस प्रतिशत निजी शिक्षा ने हथिया लिया है। इनका कुल बजट माने इन निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा की जाने वाली लूट भी इतने ही हज़ार करोड़ की हो चुकी है। ये एक विडम्बना है।
शिक्षा को लेकर मेरी चिंता आज अचानक इसलिए फिर से पेशानी पर उभरी है कि आज कुछ राज्यों से चुनाव परिणाम आये हैं। मेरी फेसबुक मित्र सूची के आम और खास लगभग सभी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इनकी प्रतिक्रिया की भाषा अशिक्षित, द्वेषपूर्ण, कुंठित और निम्न स्तरीय व्यक्ति होने का बोध करा रही है। नेताओं से भारतीय समाज कोई अपेक्षा नहीं करता है, ये दुखद है। लेकिन पत्रकार, शिक्षक और विद्यार्थी भी उन्हीं की भाषा के पदचिन्हों पर चल रहे हैं।
अंत में वे जो प्रगतिशील लोग थे वे कब के हार चुके हैं। इसलिए कि उनको सामने वालों ने अपने जैसा बना लिया है। मजाक बनाओ, भद्द पीटो, झूठ की कालिख फैलाओ जैसे कामों में लगा दिया है।
आप अपने घर को बंकर बनाना चाहते हैं या आपकी चाहना है कि आपके बच्चे मजबूत, विद्वान और कर्मयोगी बनें। इसका उत्तर आपको पता है।
मुझे मेरी चाहना पता है इसलिए नई सरकार जो बने उससे मेरी पहली मांग है कि राज्य में शिक्षा का बजट दो गुना करे। और जो नई सरकारें आएं वे इसे चौगुना कर दें। मुझे शालीन, सभ्य, विद्वतापूर्ण एवं मृदुभाषी लोग बहुत पसन्द है।
पसन्द अपनी-अपनी, मांग अपनी-अपनी।
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India’s quality of ECCE lags behind the rest of the world, ranking last among 45 countries in the Economist Intelligence Unit’s 2012 survey of ECCE quality.
Picture of classroom and statement regarding ECCE rank - Courtesy ~ Mint, Nov. 4, 2018