यूनान का गरीब ब्राह्मण आर्किमिडीज़

#भंगभपंग - 5

हनु भा जोशी ने श्यामपट्ट पर लिखा उत्प्लावन बल।

"किसी भी क्रिया के परिणाम से उत्पन्न प्रतिक्रिया से प्राप्त परिणाम को उत्प्लावन बल कहते हैं।" एक सांस लेकर कहा- "क्रिया और प्रतिक्रिया का अर्थ है कि कुकरिये को भाटा मारना एक क्रिया है और कुकरिए का पूंछ दबा कर भाग जाना प्रतिक्रिया"

हनु भाय्या ने आगे बताया-"क्रिया और प्रतिक्रिया अलग-अलग पदार्थों पर अलग-अलग होती है। कैसे होती है, कोई बता सकता है?"

सबसे पिछली पंक्ति में बैठे लड़के ने ऊंची आवाज़ में कहा- "सर कुकरिया लोंठा हो तो पूंछ दबाने की जगह बाका भी भर सकता है"

"शाबाश। अब आपको समझ आ गया कि क्रिया और प्रतिक्रिया में केवल इतना फर्क है कि पहले भाटा मारा जाना क्रिया है। उसके जवाब में पूँछ दबाना या बाका भर लेना प्रतिक्रिया है।"

हनु भाय्या ने कहा- "उत्प्लावन बल का सिद्धान्त है कि क्रिया के कर्ता का जितना भार होता है, वह उस भार के बराबर अगले को विस्थापित कर देता है।"

"माड़सा जैसे भाटा जित्ते ज़ोर से भाया उतना..."

"ज़्यादा लपर चपर नहीं। जितना बताऊं समझो, जितना पूछूं उतना उत्तर दो" ये कहते हुये उन्होने श्याम पट्ट पर लिखा। आर्किमिडीज़ का सिद्धान्त।

"आर्किमिडीज़ यूनान के एक गांव में रहने वाले गरीब ब्राह्मण थे। वे गणित के अध्यापक थे किन्तु उनका वंशानुगत अर्थोपार्जन का माध्यम था हलवाई का काम। एक दिन उनको विचार आया कि काले गुलाब जामुन चाशनी पर कैसे तैर रहे हैं। कौनसी ताकत उनको डूबने नहीं दे रही। उन्होंने झारा लेकर काले गुलाब जामुन के नीचे से घुमाया। झारा गुलाब जामुनों के नीचे से निकल गया। उन्होने गुलाब जामुन के आकार का एक गोल भाटा लिया और चाशनी में रखा तो वह तैरने की जगह डूब गया। तब उन्होंने पाया कि चाशनी की ताकत गुलाब जामुन और भाटे के लिए अलग-अलग है। अगले दिन उन्होंने प्रतिदिन की तुलना में दुगने गुलाब जामुन बनाये और उतनी ही चाशनी में रखे। दुगने गुलाब जामुन होने पर कड़ाही की चाशनी अपनी जगह से हटकर ऊपर तक आ गयी। इससे सिद्ध हुआ कि कोई वस्तु अपने भार के बराबर द्रव अथवा वायु को हटा देती है। इसकी प्रतिक्रिया माने हटाने के विपरीत जो बल लगता है उसे उत्प्लावन बल कहते हैं।"

इतना कहकर हनु भाय्या ने श्याम पट्ट पर लिखा।

"तरल में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी वस्तु के भार में हुई कमी, उस जगह से हट चुके द्रव्य के भार के बराबर होगी।"

हनु भाय्या ने पूछा। "कोई बच्चा कभी पानी में कूदा है"

एक ने कहा- "माड़सा ए डूरे मई कुदयो हतो"

"डूरा, बाजरा निकालने के बाद बची भूसी है। वह मुलायम होती है। इसलिए उसमें कूदने पर डूरा दूर हटा। इस क्रिया और प्रतिक्रिया में इसको चोट नहीं लगी। तो डूरे के उत्प्लावन बल ने इसकी ढूंगी टूटने से बचा ली"

इसी बात को हनु भाय्या ने ज़ोर से पूछा "उत्प्लावन बल ने क्या किया?"

"बचा लिया"

"ये अगर किसी भाटे पर कूदता तो?"

कक्षा के सब बच्चे हंसने लगे।

हनु भाय्या ने बच्चों से कहा- "आर्किमिडीज़ महान ज्ञानी थे। उनके पिता खगोल विज्ञानी थे। उन्होने ही गोल ग्रहों जैसे गुलाब जामुन, रसगुल्ले और लड्डुओं की कल्पना को साकर किया था। एक रोज़ आर्किमिडीज़ की माँ बेसन के गट्टे बना रही थी। उन्होने माँ से पूछा कि ये गट्टे बेलन जैसे क्यों बनाए जाते हैं? जबकि पिताजी तो रसगुल्ले गोल बनाते हैं"

हनु भाय्या ने श्यामपट्ट पर एक गोला और एक बेलन का चित्र बनाया।

"बेलन या घोटे से हम सिल पर रखकर कुछ भी पीस सकते हैं। उसकी गोली भी बना सकते हैं। तो बेलन और गोले का आपसी रिश्ता बहुत गहरा है। एक गोले का आयतन और उसकी सतह का क्षेत्रफल इसको घेरने वाले बेलन का दो तिहाई होता है। इसलिए गट्टे बेलन जैसे बनाए जाते हैं कि वे साग की तरी में ज्यादा जगह घेर सके। इससे बेसन के उबले गट्टों में अधिक स्वाद आ सके।"

थोड़ा रुककर उन्होने पूछा- "क्या आ सके?"

बच्चों ने एक साथ ज़ोर से कहा- "स्वाद"

हनु भाय्या ने श्यामपट्ट पर बनाया गोले और बेलन का रेखाचित्र साफ किया तब तक उनके कालांश के समाप्त होने की घंटी बज गयी। उनको आज आधी छुट्टी में जाना भी था। निम्बड़ी माता के मंदिर के गोठ होनी थी।

हनु भाय्या स्कूल से साइकिल लेकर निकले थे। वे सोचते जा रहे थे कि भांग ऐसा औषध है, जो अपने गुणों के अतिरिक्त बाह्य कारकों से सर्वाधिक प्रभावित होता है। सबसे बड़ा कारक है कि कम्पनी कैसी है। दूजा कारक है कि मौसम कैसा है। तीजा कारक है लेने वाले का मन कैसा है। चौथा कारक अज्ञात है कि सब परिस्थितियां अनुकूल होने पर भी लक्कड़ आ जाता है। नए पुराने भांग प्रेमी चौथे अज्ञातकारण का कभी न कभी शिकार हो चुके थे।

निम्बड़ी माता का मंदिर बाड़मेर क़स्बे से पच्चीस एक किलोमीटर दूर स्थित है। इस निकटस्थ पर्यटन स्थल पर एक तरणताल बना हुआ है, जो हर बरस एक भख लेता है। माने किसी न किसी की इसके पानी में डूबने से मौत हो जाती है। हर बरस कोई मरे न मरे लेकिन चोरी छिपे निम्बड़ी जाने वाले बच्चों को डराने के लिए ये अफ़वाह हर कोई सच ही मानता था।

गोठ में जाने वाले पांच लोग थे। बाड़मेर अस्पताल की फोर्ड एम्बुलेंस चलाने वाले नगजी, एक अंग्रेजी के लेक्चरर खूबजी, एक मलेरिया विभाग में खून के नमूने लेने वाले रामसा, हनु भाय्या और पांचवे बड़े बाबा डमजी।

डमजी अनुशासन के धनी थे। उनको अगर किसी ने सात बजे आने का समय दिया है तो सात बजते ही आना पड़ता था। पहले आना चल सकता था लेकिन पीछे कतई नहीं। डमजी खुद भी इसी कानून की पालना करते थे। वे इसी नियम से उपस्थित होते थे। इसलिए हनु भाय्या ने सायकिल के पैडल पर ज़ोर बनाए रखा।

तीन किलो मिठाई। दो किलो बाटी बनाने को आटा। एक किलो घी। आधा किलो मूंग दाल। एक पाव काजू, एक पाव बादाम, आधा पाव सूखे बड़े अंगूर माने मुनक्का, सौ ग्राम सौंफ, गुलाब की सूखी पत्तियां... नगजी ने लिस्ट पूरी पढ़ी ही नहीं। उन्होंने सामान की लिस्ट देखते हुए रामसा से पूछा- "कोई सगपण है?"

रामसा ने इशारा किया आगे पकड़ा दो। नगजी ने तोतामल खूबचन्द की दुकान के गल्ले पर पकड़ा दी। पकड़ाते हुये कहा- "मिर्चों तो लिखी ही कोनी?"

गोठ का सामान बंध गया। आर्मी रंग की फोर्ड गाड़ी मलेरिया के सेम्पल लेने के लिए निम्बड़ी की ओर चल पड़ी।

निम्बड़ी माता मंदिर प्रांगण में प्रवेश द्वार के दायीं तरफ पाकशाला है। इस पाकशाला के उत्तर में तरणताल। नगजी भोजन पकाने की सामग्री लेकर रसोई चले गए। बाकी चारों लोग तरणताल की ओर बढ़ गए। मौसम अच्छा था। मोर मियों मियों कर रहे थे। ढेलड़ियाँ गायब थीं। जुलाई का महीना था। कुछ एक बादल आ जा रहे थे।

बूटी घोट छनकर तैयार हुई। सबने भोग लगाया। तरणताल के पानी में पांव डालकर बैठ गए। भीगे पाँवों से बॉडी को चार्ज मिल रहा था। जैसे बेट्री का तार प्लग में लगा दिया गया हो। तीनों रसिक आनंद से परमानंद की सीढ़ी चढ़ गए। अब तीनों के देखने की क्षमता दस फ़ीट के दायरे तक सिमट गयी। दस फ़ीट तक पानी दिखता था। इसके आगे अथाह जलराशि की उपस्थिति अनुभूत होने लगी।

खूबजी उनके बीच से उठे और तरणताल के डाइविंग बोर्ड पर चढ़ गए। जलक्रीड़ा प्रिय खूबजी ने डाइव किया। छपाक की आवाज़ आई। डाइव करने के बाद खूबजी पानी के भीतर स्थिर हो गए। अब केवल उनका सर दिख रहा था।

पानी में पांव डाले बैठे रामसा ने खूबजी से पूछा- "पानी में सुनाई देता है?"

खूबजी ने कोई जवाब नहीं दिया। इस पर हनु भाय्या ने कहा- "जवाब नहीं आने का मतलब है कि सुनाई नहीं देता है।"

खूबजी को पानी में कूदे हुए पांच मिनट हुए थे लेकिन भांग प्रेमियों को लगा कि आधा घन्टा हो गया है।

चिंतित स्वर में रामसा ने नया प्रश्न किया। "पानी में ज़्यादा रहने से भांग ज़्यादा तो न चढ़ जाएगी"

खूबजी वहीं स्थिर रहे। उन्होंने कोई जवाब न दिया।

आधे घंटे तक जवाब न आने पर हनु भाय्या ने कहा- "पानी के उत्प्लावन बल और खूब जी में कोई होड़ चल रही है। खूबजी ऊपर आ नहीं रहे और पानी उनको नीचे जाने नहीं दे रहा"

फिर कुछ और समय बीता।

रामसा ने कहा- "एक घण्टे तक जल साधना कठिन कार्य है। स्थिति चिंताजनक है। सेम्पल लेना पड़ सकता है। "

हनु भाय्या ने कहा- "आप इसे कठिन की जगह असम्भव भी कह सकते हैं।"

डमजी ने दोनों को उपेक्षा भरी दृष्टि से देखा- "बावली फोकियां। इस जगत में कुछ भी असम्भव नहीं है"

हनु भाय्या और रामसा ने स्थिर किन्तु फटी आँखों से डमजी का कथन ग्रहण कर लिया। इसके बाद तीनों पानी से ज़रा सा बाहर दिख रहे सर के बालों को देखते रहे। उनमें से किसी के भी हिलने की स्थिति तक न थी। वे केवल देख सकते थे।

हनु भाय्या को लगा तीन कलाक समय बहुत अधिक होता है। उनसे रहा न गया। अचानक हनु भाय्या के मुंह से निकला- "खूबजी सजीव है कि निर्जीव"

डमजी ने बिना हाथ हिलाए आंखों ही आंखों से हनु भाय्या को एक चमाट लगाई। हनु भाय्या ने भी बिना गालों पर हाथ फेरे हाथ फेरकर गाल सहलाया।

इतने में नगजी आये। उन्होंने कहा- "बाटिया तो ठाडा होण आला है। हालो"

इतना कहकर नगजी छपाक से पानी में कूद गए। वहां से उन्होंने बाल पकड़े और खींचकर उनको बाहर लेकर आ गए।

"खूब जी री बालों आळी टोपी पोणी मो ही रेगी। आप उघाड़े माथे ही जीमण ने आया रा" ऐसा कहते हुए नगजी एक हाथ में खूबजी की विग पकड़े हुए थे दूजे हाथ से हनु भाय्या को उठा रहे थे।

हनु भाय्या उठे और कच्छप चाल चलते हुये समझ रहे थे कि वे दौड़ रहे हैं। वे चिल्लाने लगे। "यूरेका, यूरेका, यूरेका..."

नगजी ने पूछा- "काला होग्या के? के हाको करो हो?"

हनु भाय्या ने बताया- "यूरेका का अर्थ है मिल गया"

नगजी ने कहा- "लाध ग्या, लाध ग्या। करो"

खूबजी सजीव थे। तरणताल एक तरफ लुढ़क गया था। उस लुढ़के हुए तरणताल पर टेढ़े-टेढ़े तीन लोग चले जा रहे थे।

गोठ के बाद फोर्ड में बैठते समय हनु भाय्या फाटक पकड़ कर खड़े हो गए।

रामसा ने पूछा- "सूं थियु?"

"गाडी माथे आवे सै" हनु भाय्या ने जवाब दिया।

रामसा ने कहा- "ना आवती, चढ़ो"

हनु भाय्या ज़रा सा पाँव आगे बढ़ाए और फिर उसे पीछे खींच ले। उन्होने दरवाज़े की हत्थी मजबूती से पकड़ रखी थी। नगजी ने एक धक्का दिया। हनु भाई स्ट्रेचर रखने को छोड़ी खाली जगह में फिट हो गए।

सबको घर छोड़कर नगजी गाड़ी अस्पताल खड़ी करने आये। गेट पर भंडारी साब मिल गए। उन्होंने पूछा- "कहाँ गए थे नगजी?' नगजी ने ड्राइवर खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर कहा- "साब, नमूना लेण"

भंडारी जी ने बात को टालते हुये कहा- "ले लिए"

"हों लिया रा, ने घिरे पुगाय भी दिया।" ऐसा कहते हुये गाड़ी आगे बढ़ा ली।

सामने से एक नए चिकित्सक आ रहे थे। उनको सलाम बजाते हुये नगजी ने कहा- "जाडी नाह आलो घुटमुटियो" हालांकि नगजी ने ये केवल मन में सोचा ही था लेकिन उनको सुनाई देने लगा कि डॉक्टर साब की आवाज़ आ रही है।

गैरेज में एक ही वाक्य गूंज रहा था। "क्या कहा? क्या कहा? क्या कहा?"

नगजी ने घोषणा की भोंग एक डफोल नशो है। इतना कहकर वे गैरेज का दरवाज़ा खोजने लगे। वे अपनी अक्ल लगाकर रोशनी की तरफ गए शायद उधर ही दरवाज़ा हो मगर वो दीवार पर लगा हुआ बल्ब निकला।

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